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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? "लिखाओ, वस्तुओं के नाम लिखाओ।" "किंत श्रीकांत भाई! मेरी बात मानो! इसमें जीवन का खतरा है। और तुम जैसे गौर वर्णी का यह काम नहीं। जाने दो, यह बात छोड़ दो।" भगत ने फिर से श्रीकांत को विनति की। किंतु भविष्यफल कहने की शक्ति में श्रीकांत का मन ऐसा चिपक गया था, जैसे शहद में मक्खी चिपके! उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी। भगत ने बाद में, उसे खरीद के लाने की वस्तुओं की सूची तैयार करवाई। उसकी विधि समझाई, फिर श्रीकांत के कान के पास अपना मुंह लाकर उसके कान में एक मंत्र सुनाया। "यह सब तो बहुत सरल काम है।' श्रीकांत हर्ष से बोल उठा। | जवाब में भगत फिर से मुस्कुराए। श्रीकांत अमावस्या की काली रात में श्मशान पहुंच गया। भगत की बतायी सारी वस्तुएं वह साथ लाया था। उसने लकड़ियों का ढेर कर, उसे अग्नि से जलाकर और उसमें घी होम कर मंत्रोच्चार शुरू किया। दस मिनट में ही भंयकर चीखें सुनाई देने लगीं। चित्र -विचित्र आवाजें आने लगीं। जो मण्डला.ति बनाकर श्रीकांत उसमें बैठा था, उसके बाहर कंकालों की वर्षा होने लगी। चारों और खून की बौछारें उड़ने लगीं। डाकणों और शाकिनिओं की हुंकारें, पड़कारें एवं गर्जनाएं होने लगीं। कच्चा-पक्का हो तो हदय ही बंद हो जाये, ऐसी भयानक परिस्थिति खड़ी हो गई। किंत श्रीकांत भी कच्चे दिल का आदमी नहीं था, वज्र हदयी और दृढनिश्चयी उस आदमी की नजर , प्राप्त होने वाली सिद्धि पर थी, उसने इन सभी तूफानों की कोई परवाह नहीं की। उसने जरा भी घबराये बिना मंत्रोच्चार एवं घी का होम चालु ही रखा। आधे घन्टे बाद तो इस तूफान ने भंयकर रूप धारण कर लिया। | एक ओर से विकराल भैंसे दौड़ते नजर आये। दूसरी तरफ से कई सर्पो की फुफकारें सुनाई देने लगीं। सिंह की गर्जनाएं सुनाई देने लगीं। प्रकृति ने तांडव मचाया हो, ऐसे मृत्युनादों की परंपरा श्रीकांत के कर्णपट को छेदने 176
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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