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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? यह विद्या प्राप्त करनी ही है। वापिस जाने के लिए नहीं आया। 'कार्य साधयामि वा देहं पातयामि', मर जाऊँगा वह मंजूर है किंतु अब तो यह विद्या प्राप्त करने से ही छुटकारा है। " श्रीकांत जिद्द पकड़कर वहीं बैठ गया । " किंतु श्रीकांत भाई! इसमें भारी हिम्मत की आवश्यकता पड़ेगी। दिल में थोड़ा सा भी डर लगा, तो फिर जीवन का खतरा है। " भगत ने कहा । - "हिम्मत का अभाव नहीं है और डर तो मैं रखता ही नहीं। वीतराग प्रभु की शरण है। आप, आपको ठीक लगे वह रास्ता बताओ।" श्रीकांत ने जवाब दिया। 44 श्रीकांत के चेहरे के सामने थोड़ी देर देखकर उका भगत बोले'भाई यह तो मैली विद्या ! हम रहे मिथ्यात्वी लोग! हमको तो सब चलता है, तुम्हारे से यह सहन नहीं होगा । " "मैली हो या घेली, मुझे यह विद्या प्राप्त करनी ही है। " दृढ़तापूर्वक श्रीकांत ने फिर से जवाब दिया। उका भगत थोड़े मुस्कुराए, फिर बोले- "ठीक है, मैं लिखाता हूँ, वे सभी वस्तुएं बाजार से ले लेना। मंत्र तो छोटा ही है। अमावस की रात में, ठीक बारह बजे, यहां के श्मशान में पहुंच जाना। मैं बता रहा हूँ, वह सब व्यवस्था करके, फिर मंत्र पढ़ने लगना । तुमको भयभीत करने की कोशिस की जायेगी, मगर डर गये तो तुम्हारी लाश वहां रहेगी। नहीं डरे, मजबूत रहे, तो एक घंटे के बाद 'मांग, मांग, मांगे वो दूँ ऐसी आवाज सुनाई देगी। किंतु आवाज सुनते ही मत मांगना । उसको कहना कि साक्षात् उपस्थित नहीं होगे, दर्शन नहीं दोगे, तब तक नहीं मांगूंगा। सफेद वस्त्रों में वह मानव के आकार में हाजिर होगा। वहां अग्नि जलती होगी, उसके प्रकाश में उसकी परछाई नहीं पड़ेगी। बस, पैर धरती से 18 अंगुल ऊपर होंगे और परछाई न पड़ती हो तो समझ लेना कि वह स्वयं हाजिर है, फिर मांग लेना । " श्रीकांत ने जेब में से डायरी और लेखनी निकाली और बोला " 175
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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