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________________ लगी, किंतु वह डरा नहीं, डिगा नहीं । "कार्यं साधयामि वा देहं पातयामि " ऐसा मजबूत संकल्प कर आये इस बहादुर आदमी ने जरा भी डिगे बिना। मंत्रोच्चार क्रिया, पूर्ण स्वस्थता और एकाग्रतापूर्वक चालु ही रखी। पन्द्रह मिनट बीत गए, कंकालों के ढेर अदृश्य होने लगे। खून से रंजित भूमि पुनः मूल रंग में प्रकट हुई। आवाजें बन्द हुई, डरावना वातावरण बदल गया। उसके बदले हवा में इत्र की खुशबू आने लगी। दूर-दूर घंट बज रहा हो, वैसी आवाजें आने लगीं, संगीत के कई वाद्ययंत्र चारों ओर बजने लगे। • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? ठीक एक घंटा बीतते ही उका भगत के कथनानुसार पीछे की दिशा में से, आकाश में से आ रही हो, वैसी मधुर किंतु प्रतापी आवाज आई। "मांग, मांग, मांगे वो दूँ।" " मेरे सामने हाजिर हो" श्रीकांत ने अब सिंह की तरह गर्जना की। 'हाजिर होने का क्या काम है ? चाहिये वो मांग ले" जवाब आया। " 44 "" 'प्रत्यक्ष हो, मेरे सामने स्वयं आकर खड़े हो, तुम हाजिर न होगे, तब तक मैं नहीं मांगूँगा " - श्रीकांत ने कहा । तुम डर से मर जाओगे, मेरा रूप डरावना है। " परवाह नहीं।" "जल जाओगे, मेरे अंगों में से आग निकलती है।" "फिक्र नहीं।" 44 " प्रत्यक्ष देखने का आग्रह छोड़ दो, इसमें तुम्हारा अहित होगा" 44 'आना हो तो आ, नहीं आना हो तो तेरी इच्छा" - इतना कहकर श्रीकांत ने पुनः मंत्रोच्चार चालु किया । " बंद करो, मंत्रोच्चार बंद करो" ऊपर से आवाज आई। "तो फिर प्रत्यक्ष हाजिर हो' श्रीकांत ने आज्ञा की। "मुझे आना हो, तो भी मैं नहीं आ सकता" - जवाब मिला । क्यों?" " तुम्हारे आसपास जो तेज का गोला दिखाई दे रहा है, उसे पहले मिटा दो।" जवाब मिला। 44 - 177
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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