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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? दिन धार्मिक वांचन - चिंतन करने लगा। पत्नी बीमार हो गई। गांव एवं शहर के डॉक्टरों ने क्षय रोग बताया । उपचार हेतु 90 इंजेक्शन लिए किंतु सुधार नहीं हुआ। वहां एक साधर्मिक भाई ने पुस्तक में लिखित यह उपाय बताया, "रोग मिटाने हेतु नवकार के पांच पदों के अक्षर उल्टे क्रम से बोलना।" मैंने तथा पत्नी ने उल्टा नवकार गिनना प्रारंभ कर दिया। जिसके प्रताप से मुंबई जाकर निष्णात डॉक्टरों को बताने पर मालूम पड़ा कि क्षय नहीं है। न्युमोनाईटीश के लक्षण हैं। केमीपेन की सामान्य गोली खिलाई और ठीक हो गया। मुझे 28 वर्ष की उम्र में पंडित धीरजलाल टोकरशी शाह की बालग्रंथावली की तीन पुस्तिकाएं 'महात्मा नो मेलाप',' मन जीतवानो मार्ग, 'सिद्धिदायक सिद्धचक्र' (तीनों गुजराती) पढ़ने से नवकार का विशेषार्थ पसंद आ गया। मैंने प्रतिदिन समझपूर्वक नवकार के विशेषार्थ पर चिंतन करने का प्रारंभ कर दिया। पहले 40 मिनट लगते थे किंतु जैसे-जैसे ज्यादा जानने को मिलता गया वैसे-वैसे समय बढ़ता गया । प्रतिदिन एक बार नवकार समझने में साढ़े चार घंटे लगते। उसके बाद ग्यारह बजे दंतशुद्धि, स्नान, भोजन वगैरह हो सकता था। इसका अत्यधिक असर हुआ। छः माह में गुस्सा बहुत कम हो गया। मैं धर्म के आदेश का पालन करने लगा। मेरा साढ़े छब्बीस वर्ष पुराना अस्थमा का रोग भी मिट गया, जिसे डॉक्टरों ने असाध्य कहा था । अब मेरा वर्तन सुधर गया। जिससे सबको मेरे प्रति अरुचि कम होने लगी। मेरी बुद्धि में वृद्धि होती गई। जिससे मैं लोगों में आदर पाने लगा। - मुझे सिद्धियों एवं लब्धियों की आवश्यकता महसूस हुई, किंतु जब तक मेरे हाथ से इनका दुरूपयोग हो, तब तक ये न मिलें तो अच्छा- ऐसी भावना थी। 36 वर्ष की उम्र में धर्मज के जाड़ेजा नउभा की गले की तकलीफ मिटे तो अच्छा ऐसे भाव होते, मैंने उनके गले को ज्यों ही हाथ लगाया त्यों ही गले में ठंडक बहने का अनुभव हुआ, ओर गले की पीड़ा मिट गई। यह अप्रत्याशित घटना थी, किंतु मुझे लगा कि मुझ में शक्ति 111
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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