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________________ निसीहज्झयणं अण्णमण्ण-पदं ३१. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए सूइं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेति, अणुप्पदेतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू अप्पण्णो एक्कस्स अट्ठाए पिप्पलगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेति, अप्पतं वा सातिज्जति ।। ३३. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए णहच्छेयणगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेति, अणुप्पदेंतं वा सातिज्जति ।। ३४. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए कण्णसोहणगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेति, अणुप्पतं वा सातिज्जति ।। अविहि-पदं ३५. जे भिक्खू सूइं अविहीए पच्चप्पिणति, पच्चप्पिणंतं वा सातिज्जति ।। ३६. जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं पच्चप्पिणति, पच्चप्पिणंतं वा सातिज्जति ॥ ३७. जे भिक्खू अविहीए णहच्छेयणगं पच्चप्पिणति, पच्चप्पिणंतं सातिज्जति ॥ वा ३८. जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं पच्चप्पिणति, पच्चप्पिणंतं वा सातिज्जति ॥ ९ अन्योन्य-पदम् यो भिक्षुः आत्मनः एकस्य अर्थाय सूचीं याचित्वा अन्योन्यस्मै अनुप्रददाति, अनुप्रददतं वा स्वदते । यो भिक्षुः आत्मनः एकस्य अर्थाय 'पिप्पलगं' याचित्वा अन्योऽन्यस्मै अनुप्रददाति, अनुप्रददतं वा स्वदते । यो भिक्षुः आत्मनः एकस्य अर्थाय नखच्छेदनकं याचित्वा अन्योऽन्यस्मै अनुप्रददाति, अनुप्रददतं वा स्वदते । यो भिक्षुः आत्मनः एकस्य अर्थाय कर्णशोधनकं याचित्वा अन्योऽन्यस्मै अनुप्रददाति, अनुप्रददतं वा स्वदते । अविधि-पदम् यो भिक्षुः अविधिना सूचीं प्रत्यर्पयति, प्रत्यर्पयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः अविधिना 'पिप्पलगं ' प्रत्यर्पयति, प्रत्यर्पयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः अविधिना नखच्छेदनकं प्रत्यर्पयति, प्रत्यर्पयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः अविधिना कर्णशोधनकं प्रत्यर्पयति, प्रत्यर्पयन्तं स्वदते । उद्देशक १ : सूत्र ३१-३८ अन्योन्य-पद ३१. जो भिक्षु केवल स्वयं के लिए सूई की याचना कर एक दूसरे को देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है। ३२. जो भिक्षु केवल स्वयं के लिए कैंची की याचना कर एक दूसरे को देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है । ३३. जो भिक्षु केवल स्वयं के लिए नखच्छेदनक की याचना कर एक दूसरे को देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है। ३४. जो भिक्षु केवल स्वयं के लिए कर्णशोधनक की याचना कर एक दूसरे को देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है। अविधि-पद ३५. जो भिक्षु अविधि से सूई का प्रत्यर्पण करता है अथवा प्रत्यर्पण करने वाले का अनुमोदन करता है। 1 ३६. जो भिक्षु अविधि से कैंची का प्रत्यर्पण करता है अथवा प्रत्यर्पण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३७. जो भिक्षु अविधि से नखच्छेदनक का प्रत्यर्पण करता है अथवा प्रत्यर्पण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३८. जो भिक्षु अविधि से कर्णशोधनक का प्रत्यर्पण करता है अथवा प्रत्यर्पण करने वाले का अनुमोदन करता है। "
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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