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________________ उद्देशक १ : सूत्र २३ -३० अविहि-पदं २३. जे भिक्खू अविहीए सूइं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ।। २५. जे भिक्खू अविहीए णखच्छेयणगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ।। २६. जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ।। पाडिहारिय-पदं २७. जे भिक्खू पाडिहारियं सूइं जाइत्ता वत्थं सिव्विस्सामित्ति पायं सिव्वति, सिव्वंतं वा सातिज्जति ।। २८. जे भिक्खू पाडिहारियं पिप्पलगं जाइत्ता वत्थं छिंदिस्सामित्ति पायं छिंदति, छिंदतं वा सातिज्जति ।। २९. जे भिक्खू पाडिहारियं णहच्छेयणगं जाइत्ता हं छिंदिस्सामित्ति सल्लुद्धरणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू पाडिहारियं कण्णसोहणगं जाइत्ता कण्णमलं णीहरिस्सामित्ति दंतमलं वा णखमलं वा णीहरेति, णीहरेंतं वा सातिज्जति ।। ८ अविधि-पदम् यो भिक्षुः अविधिना सूचीं याचते, याचमानं वा स्वदते । यो भिक्षुः अविधिना 'पिप्पलगं' याचते, याचमानं वा स्वदते । यो भिक्षुः अविधिना नखच्छेदनकं याचते, याचमानं वा स्वदते । यो भिक्षुः अविधिना कर्णशोधनकं याचते, याचमानं वा स्वदते । प्रातिहारिक-पदम् यो भिक्षुः प्रातिहारिकीं सूचीं याचित्वा वस्त्रं सीविष्यामीति पात्रं सीव्यति, सीव्यन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रातिहारिकं 'पिप्पलगं' याचित्वा वस्त्रं छेत्स्यामीति पात्रं छिनत्ति, छिन्दन्तं वा स्वते । यो भिक्षुः प्रातिहारिकं नखच्छेदनकं याचित्वा नखं छेत्स्यामीति शल्योद्धरणं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रातिहारिकं कर्णशोधनकं याचित्वा कर्णमलं निस्सरिष्यामीति दन्तमलं वा नखमलं वा निस्सरति, निस्सरन्तं वा स्वदते । निसीहज्झयणं अविधि-पद २३. जो भिक्षु अविधि से सूई की याचना करता है अथवा याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। २४. जो भिक्षु अविधि से कैंची की याचना करता है अथवा याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। २५. जो भिक्षु अविधि से नखच्छेदनक की याचना करता है अथवा याचना करने वाले अनुमोदन करता है। २६. जो भिक्षु अविधि से कर्णशोधनक की याचना करता है अथवा याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। प्रातिहारिक पद २७. जो भिक्षु वस्त्र सीऊंगा - ऐसा कहकर प्रातिहारिक - लौटाने योग्य सूई की याचना करता है और उससे पात्र सीता है अथवा सीने वाले का अनुमोदन करता है। २८. जो भिक्षु वस्त्र काटूंगा - ऐसा कहकर प्रातिहारिक कैंची की याचना करता है और उससे पात्र काटता है अथवा काटने वाले का अनुमोदन करता है। २९. जो भिक्षु नख काटूंगा - ऐसा कहकर प्रातिहारिक नखच्छेदनक की याचना करता है और उससे शल्योद्धार करता है (कांटा निकालता है) अथवा करने (निकालने) वाले का अनुमोदन करता है। ३०. जो भिक्षु कान का मैल निकालूंगा- ऐसा कहकर प्रातिहारिक कर्णशोधनक की याचना करता है और उससे दांत अथवा नख का मैल निकालता है अथवा निकालने वाले का अनुमोदन करता है।'
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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