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________________ निसीहज्झयणं उद्देशक १ : सूत्र ३९,४० अण्णउत्थिय-गारत्थिय पदं अन्ययूथिक-अगारस्थित-पदम् ३९. जे भिक्खू लाउपायं वा दारुपायं वा यो भिक्षुः अलाबुपात्रं वा दारुपात्रं वा मट्टियापायं वा अण्णउत्थिएण वा मृत्तिकापात्रं वा अन्ययूथिके न वा गारथिएण वा परिघट्टावेति वा । अगारस्थितेन वा परिघट्टयति वा संठवेति वा जमावेति वा, संस्थापयति वा 'जमावेति' वा, अलमप्पणो करणयाए सुहुममविणो अलमात्मनः करणतया सूक्ष्ममपि नो कप्पइ। कल्पते। जाणमाणे सरमाणे अण्णमण्णस्स जानानः स्मरन् अन्योऽन्यस्मै वितरति, वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति॥ वितरन्तं वा स्वदते। अन्यतीर्थिक-अगारस्थित-पद३९. जो मुनि अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से तुम्बे के पात्र, लकड़ी के पात्र अथवा मिट्टी के पात्र का घर्षण करवाता है, संस्थापन करवाता है-मुंह आदि को व्यवस्थित करवाता है अथवा विषम को सम करवाता निर्ग्रन्थ स्वयं विषम को सम कर सकता है, किन्तु परिघट्टन और संस्थापन का किंचित भी कार्य अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से कराना नहीं कल्पता। अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से पात्र का घर्षण आदि नहीं कराना इस नियम को जानता हुआ तथा इस नियम के विधायक सूत्र की स्मृति करता हुआ जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ को घर्षण आदि क्रिया के लिए पात्र आदि देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है। ४०. जे भिक्खू दंडयं वा लट्ठियं वा यो भिक्षुः दण्डकं वा यष्टिकां वा ४०. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा अवलेखनिका वा वेणुसूचिकां वा दण्ड, लाठी, अवलेखनिका अथवा बांस अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा की सूई का घर्षण करवाता है, संस्थापन परिघट्टावेति वा संठवेति वा जमावेति परिघट्टयति वा संस्थापयति वा 'जमावेति' करवाता है-मुंह आदि को व्यवस्थित वा, अलमप्पणो करणयाए सुहुममवि वा, अलमात्मनः करणतया सूक्ष्ममपि नो करवाता है अथवा विषम को सम करवाता णो कप्पइ। कल्पते। जाणमाणे सरमाणे अण्णमण्णस्स जानानः स्मरन् अन्योऽन्यस्मै वितरति, निर्ग्रन्थ स्वयं विषम को सम कर वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति॥ वितरन्तं वा स्वदते। सकता है किन्तु परिघट्टन और संस्थापन का किंचित् भी कार्य अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से कराना नहीं कल्पता। अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से दण्ड आदिका घर्षण आदि नहीं कराना इस नियम को जानता हुआ तथा इस नियम के विधायक सूत्र की स्मृति करता हुआ जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ को घर्षण आदि क्रिया के लिए दण्ड आदि देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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