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________________ निसीहज्झयणं उसुकाल - ऊखल ।' कामजल स्नानपीठ । अंतरिक्खजाय जमीन के ऊपर रही हुई प्रासाद, मंच आदि कुलिय - मिट्टी से बनाई गई भींत । * भित्ति - ईंट आदि की दीवार ।' खंध - प्राकार अथवा पीठिका' अथवा मिट्टी, ईंट आदि से बना घर । " फलिह अगला, नगरद्वार को बन्द करने के बाद उसके पीछे दिया जाने वाला फलक ।" मंच - दीवार रहित मंच, मचान । मंडप - बल्ली आदि से वेष्टित स्थान, विश्राम या स्नान आदि करने का स्थान ।" माल-घर की दूसरी मंजिल आदि ।" प्रासाद - महल । १२ हर्म्यतल - सबसे ऊपर की छत।" ४. सूत्र १२ भिक्षु गृहस्थ एवं अन्यतीर्थिक का आध्यात्मिक मार्गदर्शन कर सकता है। उन्हें सन्मार्ग दिखा सकता है। गृहस्थ अथवा अन्यतीर्थ को विविध प्रकार की शिल्पकला का प्रशिक्षण देना, स्तुति-वर्णन, द्यूत व्युद्ग्रह आदि में जीतने की कला सिखाना आदि कार्य सावध हैं। वे इनका जीविकोपार्जन आदि अन्य गृहस्थप्रायोग्य प्रयोजनों में उपयोग कर सकते हैं, अतः भिक्षु गृहस्थ अथवा अन्यतीर्थिक को शिल्प, श्लोक, अष्टापद आदि न सिखाए। निशीथभाष्य एवं चूर्णि के अनुसार शिल्प, श्लोक आदि से गणित, लक्षण, शकुनरुत आदि अन्य कलाएं भी सूचित होती हैं। अतः उन्हें सिखाने वाले भिक्षु को भी आज्ञाभंग आदि दोष तथा १. निभा. गा. ४२६८ - उदुखलं उसुकालं । २. वही सिणाणपीढं तु कामजलं । ३. पाइय. ४. निभा. गा. ४२७३ - कुलियं तु होइ कुड्डुं । ५. पाइय (परिशि.) ६. निभा. गा. ४२७६ - खंधो खलु पायारो, पेढं वा । ७. वही खंधो उ घरो । ८. निभा. गा. ४२७६ - फलिहो तु अग्गला होइ । ९. वही मंचो अकुड्डो । - १०. पाइय. ११. निभा. भा. ३ चू. पृ. ३७९ - गिहोवरि मालो दुभूमादी । १२. बहीणहोतो पासादो। १३. वही सबोरिस हम्मत। १४. वही, गा. ४२७८ सचूर्णि । २८५ उद्देशक १३ : टिप्पण लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है । १४ शब्द विमर्श शिल्प - रफू करना आदि । १५ श्लोक-गुणों का वर्णन करना, स्तुति । १५ अष्टापद - चतुरंगद्यूत । १७ कर्कटक- उभयतोपाश हेतु, जैसे-यदि आप जीव को नित्य मानें तो उसमें नारक आदि पर्यायें घटित नहीं होतीं। यदि जीव अनित्य है तो उसमें कृतप्रणाश आदि दोष आते हैं । १८ व्युद्ग्रह - कलह, जैसे- राजा आदि के अमुक समय युद्ध / आक्रमण होगा- ऐसा कहना अथवा दो व्यक्ति कलह करते हैं उनमें एक को जीतने के लिए उत्तर बताना । ९ श्लाघा - प्रशस्ति करना, काव्यार्थ बताना या काव्य रचना के प्रयोग बताना । २० श्लाघाहस्तक - हस्त का अर्थ है-समूह, जैसे- पेहुण हस्त अर्थात् मोरपिच्छों का समूह।" इससे काव्य आदि सब कलाओं का सूचन होता है । २२ ५. सूत्र १३-१९६ प्रस्तुत आगम के दसवें उद्देशक में भदंत को आगाढ़, परुष एवं आगाढ-परुष वचन बोलने तथा उनकी अत्याशातना करने प्रायश्चित्त गुरुचातुर्मासिक बतलाया गया था। प्रस्तुत उद्देशक में गृहस्थ के प्रति आगाढ़, परुष आदि बोलने तथा उसका आशातना करने का लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त बतलाया गया है। भाष्यकार कहते हैं- भिक्षु क्रोध-निग्रह की साधना में तत्पर हैं, फिर भी मर्म-भेद होने पर कुपित हो सकते हैं तो गृहस्थ की तो बात ही क्या ? २३ इसी प्रकार कठोर एवं अशिष्ट वाणी तथा आशातनापूर्ण व्यवहार से भी गृहस्थ कुपित हो सकता है। मर्मोद्घाटन आदि से कुपित गृहस्थ मरने-मारने पर भी उतारु १५. वही, भा. ३ चू. पू. ३८०-सिष्यं जं आचारियउबदेसेण सिक्खचिज्जति जहा तुण्णागतूणादि। १६. वही - सिलोगो गुणवयणेहिं वण्णणा । १७. वही अट्ठापदं चउरंगेहिं जूतं । १८. वही - कक्कडगहेऊ जत्थ भणिते उभयहा पि दोसो भवति - जहा जीवस्स चित्तपरिवाहे नागादिभावो ण भवति अनिच्छे वा भणिते विणासी घटवत् कृतविप्रणाशादयश्च दोषा भवंति । १९. वही हो रामादीनं अमुककाले कलहो भविस्सति दोन्हं वा कलहंताणं एक्कस्स उत्तरं कहेति । २०. वही सलाहा कव्वकरणप्पओगो । - २१. दसवे . हा.टी.प. १५४ - पेहुणहस्ततत्समूहः । २२. निभा. भा. ३, चू. पू. ३८०- सलाहकहत्थेणं ति सव्वकलातो सूततातो भवति । २३. वही, गा. ४२८५
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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