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________________ निसीहज्झयणं १५३ उद्देशक ७: सूत्र ४१-४६ काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। ४१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाई वत्थि-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः मातृगामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य दीर्घाणि वस्तिरोमाणि कल्पेत वा संस्थापयेद्वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते । ४१. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के वस्तिप्रदेश की दीर्घ रोमराजि को काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। ४२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स दीह-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति॥ अन्योन्यस्य दीर्घरोमाणि कल्पेत वा संस्थापयेद्वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते। ४२. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु की दीर्घ रोमराजि को काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता ४३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ४३. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाइं अन्योन्यस्य कक्षारोमाणि कल्पेत वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे कक्खाण-रोमाइं कप्पेज्ज वा संस्थापयेद्वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं भिक्षु की कक्षाप्रदेश की दीर्घ रोमराजि को संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा वा स्वदते। काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और सातिज्जति॥ काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। ४४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहण- वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाई मंसु- रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य दीर्घाणि श्मश्रुरोमाणि कल्पेत वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते । ४४. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु की श्मश्रु की दीर्घ रोमराजि को काटता है अथवा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। दंत-पदं ४५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए अण्णमण्णस्स दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति॥ दन्त-पदम् यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य दन्तान् आघर्षेद् वा प्रघर्षेद् वा, आघर्षन्तं वा प्रघर्षन्तं वा स्वदते। दंत-पद ४५. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के दांतों का आघर्षण करता है अथवा प्रघर्षण करता है और आघर्षण अथवा प्रघर्षण करने वाले का अनुमोदन करता है। ४६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ४६. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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