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उद्देशक ७ : सूत्र ४७-५१
१५४ वडियाए अण्णमण्णस्स दंते अन्योन्यस्य दन्तान् उत्क्षालयेद् वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं उच्छोलेंतं वा पधोएतं वा वा स्वदते। सातिज्जति॥
निसीहज्झयणं अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के दांतों का उत्क्षालन करता है अथवा प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है।
४७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णमण्णस्स दंते फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ४७. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अन्योन्यस्य दन्तान् ‘फुमेज्ज' (फूत्कुर्याद्) अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे वा रजेद् वा, 'फुमेंत' (फूत्कुर्वन्तं) वा भिक्षु के दांतों पर फूंक देता है अथवा रंग रजन्तं वा स्वदते।
लगाता है और फूंक देने अथवा रंग लगाने वाले का अनुमोदन करता है।
उट्ठ-पदं
ओष्ठ-पदम् ४८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए अण्णमण्णस्स उडे अन्योन्यस्य ओष्ठौ आमृज्याद् वा आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, प्रमृज्याद्वा, आमाजन्तं वा प्रमार्जन्तं वा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा स्वदते । सातिज्जति॥
ओष्ठ-पद ४८. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के ओष्ठ का आमार्जन करता है अथवा प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है।
४९. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया
वडियाए अण्णमण्णस्स उडे अन्योन्यस्य ओष्ठौ संवाहयेद् वा संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, __ परिमर्दयेवा, संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा वा स्वदते। सतिज्जति॥
४९. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के ओष्ठ का संबाधन करता है अथवा परिमर्दन करता है और संबाधन अथवा परिमर्दन करने वाले का अनुमोदन करता
५०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए अण्णमण्णस्स उढे तेल्लेण अन्योन्यस्य ओष्ठौ तैलेन वा घृतेन वा वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वसया वा नवनीतेन वा अभ्यज्याद् वा वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, प्रक्षेद् वा, अभ्यञ्जन्तं वा म्रक्षन्तं वा अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा स्वदते। सातिज्जति॥
५०. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर
अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के ओष्ठ का तैल, घृत, वसा अथवा मक्खन से अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण करता है और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने वाले का अनुमोदन करता है।
५१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ५१. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स उठे लोद्धेण __ अन्योन्यस्य ओष्ठौ लोध्रेण वा कल्केन अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा वर्णेन वा चूर्णेन वा उल्लोलयेद् वा भिक्षु के ओष्ठ पर लोध, कल्क, चूर्ण अथवा वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदे॒ज्ज वा, उद्वर्तेत वा, उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तमान वर्ण का लेप करना है अथवा उद्वर्तन करता उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा वा स्वदते ।
है और लेप अथवा उद्वर्तन करने वाले का सातिज्जति॥
अनुमोदन करता है।