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________________ २०४ भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङमयका अवदान और प्रतिभाशाली व्यक्तिको इस महत्त्वपूर्णपदपर नियुक्त करना चाहिये। जो राजा गुप्तचर नियुक्त नहीं करता है, वह अपनी प्रजापर ठीक तरहसे शासन नहीं कर सकता है । गुप्तचरके लिए कपटी, धूर्त, मायावी, शकुननिमित्तज्योतिष-विशारद, गायक, नर्तक, विदूषक, वैतालिक, ऐद्रजालिक होना चाहिये। यों तो ३४ प्रकारके व्यक्तियोंको चर नियुक्त करनेपर जोर दिया है। पुलिस विभागकी व्यरस्थाके लिये अनेक कानून भी बताये गये हैं तथा शासनके लिये अनेक पदों एवं उनके कार्योंका प्रतिपादन किया गया है। यशस्तिलकमें गुप्तचरोंके साथ या उनके नीचे कुछ ऐसे व्यक्तियोंका नाम भी बताया गया है जो आजकल आई० जी०के पदके तुल्य होता था। पुलिस के अधिकार आजकी अपेक्षा सोमदेव सूरिने कम ही बताये हैं । हाँ सेनापति का आदेश लेकर पुलिस अफसर स्वतन्त्रतापूर्वक भी मामलों की जांच कर सकता है । कई धाराएँ ऐसी निर्धारित की गयी हैं जिनमें पुलिसको चोरी, बलात्कार, पशुधनापहरणके मामलों की जाँचका पूरा अधिकार है। कोश विभाग का वर्णन करते हुए सोमदेवसूरिने राज्य संचालनके लिये कोशपर बड़ा भारी जोर दिया है । जो राजा सम्पत्ति, विपत्तिके समयके लिये कोश संचय करता है, वही अपने राज्य का विकास कर सकता है । कोश में सोना, चाँदी, द्रम्म-मुद्राएँ, धान्य का संग्रह होना चाहिये । इन आचार्यने कोशको महत्ता दिखाने के लिये कोशको ही राजा बताया है, क्योंकि जिमके पास द्रव्य है वही तो संग्राममें विजय प्राप्त कर लेता है। धनहीनको संसारमें कुटुम्बी-स्त्री पुत्रादि भी छोड़ देते हैं अतः राजाओं की सबसे बड़ी शक्ति धन ही है । इस एक चीजके होनेसे ही समस्त वस्तुओंका प्रबन्ध किया जा सकता है। कोश संग्रहमें प्रमुख धान्य संग्रहको बतलाया है, क्योंकि सबसे अधिक प्रधानता इसी की है । धान्यके होनेसे ही प्रजा और सेनाकी जीवन यात्रा चल सकती है । युद्धकालमें भी धान्यकी विशेष आवश्यकता पड़ती है । रस संग्रहमें लवण-नमकको प्रधानता दी गयी है", क्योंकि लवणके बिना भोजनमें १. अलौल्यममान्द्यममृषाभाषित्वमभ्यूहकत्वं चारगुणाः । छात्रकापटिकोदास्थितगृहयतिवैदेहि कतापसिकरातयमपट्टिकाऽहितुण्डिकशौण्डिकशोभिकपाटच्चरविटविदूषकपीठमईननर्त्तकडमूकगायकवादकबाग्जीवनगणकशाकुनिकभिषगन्द्रजालिकनैमित्तिकसूदारालिकसंवादकतीक्ष्णक्रूर जडमूकबधिरान्धछद्मावस्थायियायिभेदेनावसर्पवर्गः ॥-नीति वा० चार सू० २, ८ २. यो विपदि सम्पदि च स्वामिनस्तंत्राभ्युदयं कोशयतीति कोशः ॥ सातिशयहिरण्यरजतप्रायोव्यायवहारिक नाणकबहुलो महापदि व्ययसहश्चेति कोशगुणः -नीतिवा० कोश० स० सू० १-२ ३. कोशो राजेत्युच्यते न भूपतीनां शरीरं । यस्य हस्ते द्रव्यं स जयति । धनहीनकलत्रेणापि परित्यज्यते किं पुनर्नान्यः । न खलु महान् कुलीनश्च यस्यास्ति धनमनूनं -नीति वा० कोश स० सू०७-११ ४. सर्वसङ्ग्रहेषु धान्यसंग्रहो महान् । यतस्तन्निबन्धनं जीवितं सकलप्रयासश्च ।। न खलु मुखे क्षिप्तः खरोऽपि द्रम्मः प्राणत्राणाय यथा धान्यम् ।। -नीति० अमात्य समुद्देश सू० ६५ ५. लवणसंग्रहः सर्वरसानामुत्तमः । सर्वरसमयमप्यन्नमलवणं गोमयायते ।। -नीतिवा० अ० स० सू० ६९-७०
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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