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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति १९७ खुदा हुआ मिला है ।" कुमारपालका अजयपाल पुत्र था । 2 कुमारपालने आचार्य हेमचन्द्रसे जैन धर्मकी दीक्षा ली थी । इसने जैन धर्मके प्रचारके लिये अनेक प्रयास किये थे । शत्रु जय और गिरनारकी यात्राके लिए संघ निकालकर संघपतिकी उपाधि ग्रहण की थी और अनेक जैन मंदिर भी बनवाए थे । कुमारपालके सिक्के उद्भाण्डपुरके शाही राजाओंके सिक्कों के ढंग पर मिश्र धातुके हैं । इनमें एक ओर सिंह तथा दूसरी ओर हाथीकी मूर्ति है । अजयपाल कट्टर वैदिक धर्मानुयायी था, पर इसके सिक्के भी कुमारपालके ही समान हैं । इस प्रकार अनेक सिक्के जैन हैं, अन्वेषणशील विद्वानोंको इस ओर ध्यान देना चाहिए । 1. Epigraphia Indica, Vol. IIP 422. 2. Epigraphia Indica Vol. VIII. App, Ip-14. 3. बम्बई प्रांतके जैन स्मारक, पृ० २१० तथा संक्षिप्त जैन इतिहास, द्वि० भा०, खं० २, पृ० १३३ ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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