SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान बरंगलके काकतीय वंशके राजाओंके सोने और ताँबेके सिक्के मिले हैं । इन पर एक ओर बृषभका चिन्ह हैं और दूसरी ओर कन्नड़ी अथवा तेलगू भाषाका लेख है ।" ये सिक्के भी जैन है । १९६ दक्षिणापथमें पाण्ड्य, चेर, राष्ट्रकूट, गंग आदि कई वंशके राजा जैन धर्मानुयायी थे । इन्होंने १२वीं, १३वीं और १४वीं शती में मुद्राएँ प्रचलित की थीं। इन राजाओं की मुद्राओं पर भी जैन मिलते हैं । वास्तव में दक्षिणापथमें जैनधर्मका प्रचार कई शताब्दियों तक जोर से रहा है । इस धर्मने राजाश्रय पाकर अपनी उन्नति की थी । अनेक राजाओंने जैन गुरुओं को दान दिये थे । मिहिरकुलके प्राप्त सिक्कोंमें दो प्रकारके तांबेके सिक्के प्रधान हैं । पहले प्रकार के सिक्कोंपर एक ओर राजाका मस्तक और उसके मुँहके पास 'श्रीमिहिर कुल; अथवा 'श्रीमिहिरगुल' लिखा है । दूसरी ओर ऊपर खड़े हुए वृषभको मूर्ति है और उसके नीचे 'जयतु वृष' लिखा है । ये पहले प्रकारके सिक्के जैन हैं । द्वितीय प्रकारके सिक्कों पर एक ओर खड़े हए राजाकी मूर्ति और उसके बगल में एक ओर 'बाहिमिहिरकुल' लिखा है । दूसरी ओर सिंहासन पर पद्मावती की मूर्ति है । 3 मिहिर कुलके ये सिक्के तोरमाणके सिक्कोंपर बने हुए हैं । हमारा अनुमान है कि यह तोरमाण जैनाचार्य हरिगुप्तका प्रशिष्य और देवगुप्तका शिष्य था । " यही कारण है कि मिहिर कुलके सिक्कोंमें जैन धर्मकी भावना अंकित की गयी है । उत्तरापथके मध्ययुगीन सिक्कोंमें उद्भाण्डपुरमें शाही राजवंशके पाँच राजाओंके सिक्के मिले हैं। पहले प्रकार के सिक्कोंपर एक ओर वृषभ और दूसरी ओर घुड़सवार की मूर्ति है । दूसरे प्रकारके सिक्कोंपर एक ओर हाथी और सिंहको मूर्ति है। तीसरे प्रकार के सिक्कोंपर एक ओर सिंह और दूसरी ओर मयूर की मूर्ति है । हाथी और सिंहकी मूर्ति वाले सिक्कोंपर 'श्री पदम' 'श्री वक्कलदेव' और श्री ' सामान्तदेव' नाम मिले हैं। हाथी और सिंहकी मूर्तिवाले सिक्के निश्चय जैन हैं । इन सिक्कोंपर जैन भावनाका प्रभाव है । ८ गुजरात में कुमारपाल और अजयपाल के सिक्के अधिक संख्या में मिले हैं। ये चालुक्यवंशी राजा थे। ग्वालियर राज्यमें अजयपालके राज्यकालका वि० सं० १२२९ का खुदा हुआ एक शिलालेख मिला है।' इसी जगह कुमारपालके राज्यकालमें वि० सं० १२२० का एक शिलालेख खुदा है । इसका अन्य शिलालेख मेवाड़ राज्यके चित्तौड़ में वि० सं० १२०७ का 1. प्राचीन मुद्रा २२९; South Indian Coins P. 152 Nos 93-95. 2. Indian Museum Coins Vol. 1, P. 337 Nos 1. 3. Indian museum Coins Vol, 1, P. Nos 1. 4. Indian Coins P. 30. 5. जैन साहित्यनो इतिहास, पृ० १३२ 6. Indian museum Coins Vol. 1, P. 243, 246-248, Nos 1-15 7. Indian Coins P. 31. 8. संक्षिप्त जैन इतिहास द्वितीय भाग, द्वितीय खंड, पृ० १२९ । 9. Indian Antiqury Vol. XVIII, P. 347.
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy