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________________ भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान गया है । उत्तरपुराणमें इसी षष्ठी तिथिका समर्थन उपलब्ध होता है। वृन्दावन और मनरंग ने भी इसी तिथिको निवार्णकल्याणका होना लिखा है। और ज्योतिषकी दृष्टिसे विचारकरनेपर फाल्गुनी पूर्णिमाको उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र आता है तथा चैत्रमासकी पूर्णिमाको चित्रा। उत्तराफाल्गुनीसे नक्षत्र गणना और प्रतिपदासे तिथि गणना करनेपर चैत्र शुक्ला षष्ठीको मृगशिर नक्षत्र आ जाता है । अतः यह निर्वाण तिथि शुद्ध है । अभिनन्दन स्वामीका गर्भकल्याणक वैशाख शुक्ला' षष्ठीको उत्तरपुराणकारने बतलाया है । इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र था। कवि वृन्दावनने भी वैशाख शुक्ला षष्ठीको ही गर्भ कल्याणकका सम्पन्न होना बतलाया है। मनरंगलालने अभिनन्दन स्वामीका गर्भकल्याणक वैशाखशुक्ला अष्टमीको होना बतलाया है। ज्योतिषके अनुसार विचार करनेपर वैशाख शुक्ला षष्ठीको पुनर्वसु नक्षत्र पड़ जाता है । क्योंकि चैत्री पूर्णिमाको चित्रा नक्षत्र रहता है । स्वातिसे नक्षत्र गणना करनेपर २० नक्षत्र संख्या आती है, तिथि गणना करनेपर २१ तिथि संख्या आती है। किन्तु इस स्थितिमें वैशाखकृष्णा सप्तमीको तिथिक्षय था, अतः तिथि और नक्षत्रमें समता मिल जाती है । कवि मनरंग द्वारा प्रतिपादित तिथि अशुद्ध है; क्योंकि इसका नक्षत्रके साथ समन्वय नहीं होता है । पुनर्वसु नक्षत्र ही तिथिका नियामक है, इसके द्वारा षष्ठी तिथि ही आती है, अष्टमी नहीं। चतुर्थ तीर्थंकर अभिनन्दन स्वामीका जन्मकल्याणक तिलोयपण्णत्तिमें माघशुक्ला द्वादशीके' दिन पुनर्वसु नक्षत्रमें माना गया है। उत्तरपुराणमें भी यही तिथि बतलायी गयी है । वृन्दावनने भी इसी तिथिको भगवान्का जन्म होना बतलाया है; किन्तु मनरंगने माघ शुक्ला चतुर्दशीको जन्म तिथि बतलाया है । ज्योतिष प्रक्रिया द्वारा विचार करने पर माघशुक्ला द्वादशी तिथि शुद्ध जंचती है; क्योंकि माघी पूर्णिमाको मघा नक्षत्र रहता है । अतः द्वादशीको पुनर्वसु, त्रयोदशीको पुष्य, चतुर्दशीको आश्लेषा और पूर्णिमाको मघा नक्षत्र होगा । अतएव मनरंग द्वारा लिखित माघशुक्ला चतुर्दशी अशुद्ध है और द्वादशी तिथि शुद्ध है। तपकल्याणककी तिथि तिलोयपण्णत्तिमें माघ शुक्ला द्वादशी मानी है तथा इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र था । उत्तरपुराणमें भी उपयुक्त योगका ही कथन किया गया है । वृन्दावन १. वैशाखस्य सिते पक्षे षष्ठयां भे सप्तमे शुभे। स्वप्नेक्षानन्तरं वक्त्रं विशन्तं वीक्ष्य सा गजम् ।।-उत्तर० ५०,१८ २. गरभस्थिति महराजा वैशाखसित अष्टमी दिना कैसे । -सत्यार्थयज्ञ ३. माघस्स बारसीए सिदाम्मि पक्खे पुणन्वसूरिक्खे। संवरसिद्धत्थाहिं सामेदे णंदणो जादो ॥-तिलोय० ४-५२९ ४. माघे मास्यदितौ योगे धवल द्वादशी दिने ।-उत्तर० ५०-१९ ५. माघ सुदी चौदसिको जन्मै अखण्डप्रतापधर सूर ।-सत्यार्थयज्ञ ६. सिद बारसिपुव्वले माघे मासे पुणव्वसूरिक्खे। उग्गवणे उववासे तदिए अभिणंदणो य णिक्कतो॥-तिलो० ४-६४७ ७. मासे सिते स्वगर्भङ्क्ष द्वादश्यामपरागः । दीक्षां षष्ठोपवासेन जैनी जग्राह राजभिः ॥-उत्तर० ५०-५१
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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