SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति १६५ उल्लेखनीय यह भी है कि चान्द्रमास गणना शुक्लपक्षकी प्रतिपदासे हो ली जाती थी । ग्यारहवीं शताब्दी से सुविधाके लिए कृष्णपक्षकी प्रतिपदासे मास गणना की जाने लगी है । अतः फाल्गुन शुक्लपक्ष की प्रतिपदासे गणना करनेपर 'नवमे मासि' पाठ और भी स्पष्ट हो जाता है । इसलिए भगवान् संभवनाथ की जन्मतिथि मार्गशीर्षी पूर्णिमा माननी चाहिए । कार्तिकी पूर्णिमा भ्रान्त है । भगवान् संभवनाथकी तपकल्याणक तिथि तिलोय पण्णत्त में मार्गशीर्षी पूर्णिमा' बतलायी गयी है । इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र था तथा दीक्षा ग्रहण करनेका काल तृतीय प्रहर बतलाया गया है । उत्तर पुराणसे भी इसी तिथिका समर्थन होता है । कवि वृन्दावनने मार्गशीर्षी पूर्णिमा तथा मनरंगने भी इसी तिथिको दीक्षा कल्याणक तिथि बतलाया है । अतः संभवनाथ स्वामीका तपकल्याणक मार्गशीर्षी पूर्णिमाको हुआ है । ज्योतिष की दृष्टिसे विचार करनेपर ज्येष्ठा नक्षत्र उक्त पूर्णिमाको नहीं आता है; इस दिन गणित द्वारा मृगशिर नक्षत्र ही आता है । इसलिए तिलोपत्ति 'जेट्टाए' के स्थानपर 'माग्गिसिए' या 'मिग्गाए' पाठ होना चाहिए । संशोधनके समय अर्थपर ध्यान नहीं दिया गया होगा । अतएव दीक्षाकल्याणक संभवनाथ स्वामीका मार्गशीर्षी पूर्णिमाको सम्पन्न हुआ ही माना जायगा । भगवान् संभवनाथ स्वामी के ज्ञानकल्याणकके सम्बन्ध में तिलोयपण्णत्तिमें मूल कोई गाथा उपलब्ध नहीं है । प्रक्षिप्तरूपमें बतलाया गया है कि कार्तिक कृष्णा पञ्चमी के दिन अपराह्न कालमें ज्येष्ठा नक्षत्र के रहते हुए भगवान् संभवनाथ स्वामीको ज्ञान सम्पन्न हुआ था । उत्तरपुराण में कार्त्तिक कृष्णा चतुर्थी के दिन मृगशिर नक्षत्र में सन्ध्याके समय केवलज्ञानकी प्राप्ति होना बतलाया गया है । कवि वृन्दावन और मनरंग ने भी कार्तिक कृष्णा चतुर्थीको ही केवलज्ञानकी प्राप्ति होना बतलाया है । ज्योतिष की दृष्टिसे कार्त्तिक कृष्णा चतुर्थी ही शुद्ध तिथि मालूम होती है । क्योंकि मृगशिर नक्षत्र इसी तिथिको पड़ता है । आश्विनी पूर्णिमाके दिन अश्विनी नक्षत्र था तथा कार्तिक कृष्णा प्रतिपदाको भरणी, द्वितीयाको कृत्तिका, तृतीयाको रोहिणी और चतुर्थीको मृगशिर नक्षत्र आता है । कार्तिक कृष्णा पञ्चमीको ज्येष्ठा नक्षत्र कभी नहीं आ सकता है, अतः यह तिथि अशुद्ध है । संभवनाथ स्वामीका निर्वाण कल्याणक चैत्रशुक्ला" षष्ठीको उनके जन्म नक्षत्र में बताया १. मग्गसिरपुष्णिमाए तदिए पहरम्मि तदिय उववासे । जेट्टाए णिक्कतो संभवसामी सहेदुगम्मि वणे ।। - तिलोय० ४-६४६ २. जन्मर्थे कार्तिके कृष्णचतुर्थ्यामपरागः । ३. षष्ठोपवासो हत्वाघान् प्रापानन्तचतुष्टयम् ।—उत्तर० ४९-४१ कातिक कलि तिथि चौथ महान । घातिघात लिया. केवल ज्ञान ॥ - वृन्दावन चौ० वि० ४. कार्तिक वदी शुभ चौथके दिन ज्ञान उपजत जानि । ५. समवशरन विशाल अनुपम रचत धनपति आनि ॥ मनरंग सत्यार्थयज्ञ चेत्तस्स सुक्कछट्ठीअवरण्हे जम्मभम्मि सम्मेदे | संपत्तो अपवग्गं संभवसामी सहस्सजुदो ॥ - तिलोय० ४ - ११८७
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy