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________________ जैन तीर्थ इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति उत्सुक रहती है । सन्तानकी प्राप्तिसे माताको जितनी प्रसन्नता होती है उससे कहीं बढ़कर वधूके आनेमें । भगवान् ऋषभदेवकी माता मरुदेवीको अपने पुत्रको वधू प्राप्तिके लिए अत्यधिक उत्सुकता थी । वृद्धा जननीकी एक झलक हमें उस समय मिलती है जब देखते हैं कि नवीन वधूके आते ही वह उसे अपना उत्तरदायित्वपूर्ण पद सौंप देती है और स्वयं धर्म साधनमें लग जाती है । गृहस्थीके समस्त मोह जालसे छुटकारा पाकर वह जिनदीक्षा ग्रहण करती है। ८३ पर्वके ८६वें श्लोकमें बताया है "तदेव ननु पाण्डित्यं यत्संसारात् समुद्धरे" का चिन्तन कर पण्डिताने दवदन्त चक्रवर्तीके साथ ही दीक्षा ग्रहण कर ली। विधवा की स्थिति जिनसेनाचार्यने विधवा नारीको स्थितिके सम्बन्धमें विशेष प्रकाश नहीं डाला है । कुछ ही ऐसे स्थल हैं जिनसे विधवा नारीकी सामाजिक और धार्मिक स्थितिका पता लगता है । समाजमें उस समय विधवा नारीको अपशकुन नहीं समझा जाता था, उसे समाज आदर और सम्मानकी दृष्टिसे देखता था। विधवाएं भी धर्म साधनमें अपना अवशेष जीवन व्यतीत करती थों, तथा व्रतोपवास द्वारा अपना आत्मशोधनकर स्वर्गादिक सुखोंको प्राप्त होती थीं । आचार्यने ६वें पर्वके ५४-५५वें श्लोकमें ललितांगदेवकी मृत्युके अनन्तर स्वयंप्रभाकी चर्चा एवं कार्यकलापोंका चित्रणकर विधवा नारीके कार्यक्रमका एक स्पष्ट चित्र प्रस्तुत कर दिया है । बताया गया है कि ललितांगकी मृत्यु के पश्चात् स्वयंप्रभा संसारके भोगोंसे विरक्त हो आत्मशोधन करने लगी। यह मनस्विनी भव्य जीवोंके समान ६ महीनेतक जिन पूजा में उद्यत रही तदनन्तर सौमनस वन सम्बन्धी पूर्व दिशाके जिनमन्दिरोंमें चैत्यवृक्षके नीचे पंचपरमेष्ठीका स्मरण करते हुए समाधिमरण धारण किया षण्मासान् जिनपूजायामुद्यताऽभून्मनस्विनी ॥ ततः सौमनसोद्यानपूर्वदिजिनमन्दिरे । मूले चैत्यतरोः सम्यक् स्मरन्ती गुरुपंचकम् । समाधिना कृतप्राणत्यागा प्राच्योष्ट सा दिवः । सं० ६ श्लो० ५५-५७ इससे स्पष्ट है कि पतिकी मृत्यु के पश्चात् स्त्री अपना धर्ममय जीवन व्यतीत करती थी। वह लोकषणा और धनेषणासे रहित होकर समाजकी सेवा करते हुए जीवनयापन करती थी। ___ इस प्रकार जिनसेनने नारोके सभी पहलुओं पर विचार किया है। उन्होंने अपने समयके नारी समाजका एक सुन्दर और स्पष्ट चित्र प्रस्तुत किया है ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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