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________________ तीर्थंकरोंकी पञ्चकल्याणक तिथियाँ दि० जैन समाजमें तीर्थंकरोंकी पञ्चकल्याणक तिथियोंकी मान्यतामें बहुत मतभेद है । इसका प्रधान कारण तिलोयपण्णत्ति जैसे प्राचीन ग्रन्थोंका भण्डारोंमें पड़ा रहना, उनका एक प्रकारसे लोप हो जाना तथा उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण, पद्मपुराण आदि पुराण अन्योंके आधार.पर हिन्दी भाषाके कवियों द्वारा पञ्चकल्याणक तिथियोंका निरूपण करना ही माना जा सकता है । तुलनात्मक दृष्टिसे विचार करनेपर तिलोयपण्णत्ति द्वारा प्रतिपादित तिथियोमें भी कुछ तिथियाँ अशुद्ध प्रतीत होती हैं । पुराणों में निरूपित तिथियोंमें तो कई स्थानोंपर भूल है । अतः यह बावश्यक है कि गणित और ज्योतिषकी दृष्टिसे जो तिथियाँ जिस कल्याणकको जिस ग्रन्थके आधारसे ठीक सिद्ध हों, उन्हींको प्रामाणिकता मिलनी चाहिए । अतः धार्मिक पर्व और विधानोंका सम्पादन शुद्ध तिथिमें करनेपर ही पुण्यातिशयरूप फलको प्राप्ति होती है । इतिहासके लिए भी इन तिथियोंकी महत्ता अत्यधिक है । भगवान् ऋषभदेवका गर्भकल्याणक आषाढकृष्णा द्वितीया उत्तराषाढ़ा नक्षत्रमें हुआ है। यह मान्यता सभी पुराणोंकी है तथा हिन्दीके कवियोंने भी इसी तिथिका उल्लेख किया है। नक्षत्र और तिथिके संयोग द्वारा ही किसी तिथिकी प्रामाणिकता जानी जाती है । अतः ज्योतिषके आधारपर इस तिथिकी शुद्धताकी परीक्षा करनेपर यह शुद्ध प्रतीत होती है । क्योंकि ज्येष्ठा नक्षत्र उस समय ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्दशीकी रात्रिमें उदित हुआ था तथा पूर्णिमाको उदयकालमें भी ज्येष्ठा ही था। प्रतिपदा तिथिको मूल नक्षत्र रहा है इसी तिथिको रात्रिके ग्यारह बजे पूर्वाषाढ़ा दिखलाई पड़ा था क्योंकि इस वर्ष आषाढ़ कृष्ण पक्षमें दो प्रतिपदाएं हुई। थीं । अतः प्रथम प्रतिपदाको मूल और दूसरी प्रतिपदाको उदयमें पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र रहा था अगले दिन द्वितीया तिथिके उदयमें आते ही उत्तराषाढ़ा नक्षत्र आ गया था । अतएव ज्योतिषदृष्टिसे भगवान् ऋषभदेवके गर्भकल्याणककी तिथि आषाढ़ कृष्णा द्वितीया उत्तराषाढ़ा नक्षत्रवाली शुद्ध है। ___आदिनाथ स्वामीका जन्मकल्याणक तिलोयपण्णत्ति, आदिपुराण आदि सभी ग्रन्थोंमें चैत्रकृष्णा नवमी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र बताया गया है । परीक्षा करनेपर यह तिथि भी शुभ जंचती है । अतः फाल्गुन पूर्णिमाके दिन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र था। पूर्णिमाके चन्द्र माने पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी इन दोनों नक्षत्रोंका भोग किया था। इससे तात्पर्य यह निकला कि पूर्णिमाकी रात्रि पूर्वाफाल्गुनीके अन्त होनेपर उत्तराफाल्गुनी आ गया था तथा चैत्रकृष्णा १. आषाढ़ासितपक्षस्य द्वितीयायां सुरोत्तमः । उत्तराषाढनक्षत्रे देव्या गर्भसमाश्रितः ॥-आदि० पर्व १२ श्लो० ६३ टिप्पण। २. जादो हु अवज्झाए उसहो मरुदेविणाभिराएहिं । घेत्तासियणवमीए णक्खत्ते उत्तरासाढ़े ।।४.५२६ ३. चैत्रे मास्यसिते पक्षे नवम्यामुदये रविः । विश्वे ब्रह्ममहायोगे जगतामेकवल्लभम् ॥१३/२-३
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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