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________________ १२६ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान ___ महाराज यम उदेशके राजा थे। इन्होंने सुधर्म स्वामीसे दीक्षा ली थी। इन्हींके साथ महारानी धनवतीने भी श्राविकाके व्रत ग्रहण किये थे । धनवतीने जैन धर्मके प्रसारके लिए कई उत्सव किये थे । यह परम श्रद्धालु और धर्म प्रचारिका नारी थी। इसके प्रभावसे केवल इसका कुटुम्ब हो जैन धर्मानुयायी नहीं हुआ था बल्कि उड्रदेशको समस्त प्रजा जैन धर्मानुयायिनी बन गयी थी। सम्राट् एल खारवेलकी पत्नी भूसीसिंह यथा बड़ी धर्मात्मा हुई है । इसने भुवनेश्वरके पास खण्डगिरि और उदयगिरिपर अनेक गुफाएं बनवायीं और मुनियोंकी सेवा शुश्रूषा की। मथुरा अभिलेखोंसे ज्ञात होता है कि अमोहिनी', लेण शोमिका', शिवामित्रा' धर्मघोषा', कसुयकी धर्मपत्नो स्थिरा', आर्या जया', जितामित्रा एवं आर्या बसुला आदिने जैन धर्मके उत्थानके लिए मन्दिर निर्माण, मूर्ति प्रतिष्ठा, आयाग पट्ट निर्माण आदि कार्य सम्पन्न किये । यहाँ स्मरणीय है कि उस युगमें धर्माराधनाका सबसे बड़ा साधन मन्दिरों एवं मूत्तियोंका निर्माण, उनकी प्रतिष्ठा करना ही माना जाता था। मथुराके एक संस्कृत अभिलेख में ओखरिका और उज्झतिका द्वारा वर्धमान स्वामीकी प्रतिमा प्रतिष्ठित किये जाने एवं जिन मन्दिरके निर्माण किये जानेका उल्लेख आया है ।९ ई० पूर्वकी तीसरी-चौथी शताब्दीसे लेकर ई० सन् की छठी शताब्दीके इतिहासमें गंगवंशको महिलाओंकी उल्लेखनीय सेवाका निर्देश प्राप्त होता है । राजाओंके साथ गंगवंशकी रानियोंने भो जैन धर्मकी उन्नतिके लिए अनेक उपाय किये । ये रानियाँ मन्दिरोंकी व्यवस्था करतीं, नये मन्दिर और तालाब बनवाती एवं धर्म कार्योंके लिए दान की व्यवस्था करती थीं। उस राज्यके मूल संस्थापक दडिग और उनकी भार्या कम्पिलाके धार्मिक कार्योंके सम्बन्धमें कहा गया है कि इस दम्पतिने अनेक जैन मन्दिर बनवाये थे तथा मन्दिरोंकी पूर्ण व्यवस्था की थी। श्रवणबेलगोलाके शक संवत् ६२२ के अभिलेखोंमें आदेयरेनाडमें चितूरके मौनी गुरुकी शिष्या नागमती, पेरुमालु गुरुकी शिष्या धण्ण कुत्तारे विगुरवि, नमिलूर संघकी प्रभावती, मयूर संघको अध्यापिका दनितावतो, इसी संघकी सोन्दर्या आर्या नामकी आर्यिका एवं व्रतशीलादि सम्पन्न शशिमति गोतिके समाधि मरण धारण करनेका उल्लेख मिलता है। इन देवियोंने श्राविकाके व्रतोंका पालन किया था । अन्तिम जीवन में संसारसे विरक्त होकर कटवपपर्वतपर समाधि ग्रहण १. जैन शिलालेख संग्रह द्वितीय भाग अभिलेख सं० ५ । २. वही, शिलालेख सं०८ । ३. वही अभिलेख सं० ९ । ४. वही, अभिलेख सं० १२ । ५. वही अभिलेख सं० २२ । ६. वही अभिलेख सं० २४ । ७. वही अभिलेख सं० ४१ । ८. वही अभिलेख सं० ६३ । ९. जैन शिलालेख सं० द्वितीय भाग, अभिलेख सं० ८८
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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