SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति १२७ कर ली थी। सौन्दर्या आर्यिकाके सम्बन्धमें अभिलेख २९ में बताया है कि उसने उत्साहके साथ आत्मसंयम सहित समाधि व्रतका पालन किया और सहज ही अनुपम सुरलोकका मार्ग ग्रहण किया। इसके अनन्तर जैनधर्मके धार्मिक विकासके इतिहासमें पल्लवाधिराज मरुवर्माकी पुत्री और निर्गुन्द देशके राजा परमगुलकी रानी कन्दाक्षिका नाम आता है। इसने श्रीपुरमें लोकतिलक जिनालय बनवाया था। इस जिनालयकी सुव्यवस्थाके लिए श्रीपुर राजाने अपनी भार्याको प्रेरणा एवं परमगुलकी प्रार्थनासे निर्गुन्द देश में स्थित पुनल्ली नामक ग्राम दानमें दिया था। ऐतिहासिक जैन धर्मसेविका जैन महिलाओंमें इस देवीका प्रमुख स्थान है। इसके सम्बन्धमें बताया जाता है कि यह सदा पुण्य कार्यों में आगे रहती थी। इसने कई उत्सव और जागरण भी किये थे । इसका समय ई० सन् की ८ वीं शताब्दी है । दसवीं शताब्दीमें राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीयके राज्य कालमें महासामन्त कलिबिट्ट रस वनवास प्रदेशके अधिकारी थे। सन् ९११ ई० में नगर खण्डके अधिकारी सत्तरस नागार्जुनका स्वर्गवास हो गया। उनके स्थानपर उनकी पत्नी जक्कियब्बेको अधिकारी नियुक्त किया गया। जक्कियब्वे शासनमें सुदक्ष और जैन शासनकी भक्त थी । नारी होनेपर भी उसमें बहादुरीकी कमी नहीं थी। सोलेतोरने इस नारीके सम्बन्धमें लिखा है-"This lady who was skilled in ability for good government faithful to the Jinendra Sasan and rejoicing in her beauty'." इसी १० वीं शताब्दीमें जैन इतिहासमें स्मरणीय अतिमब्बे नामक महिलाका जन्म हुआ है। इस देवीके पिताका नाम सेनापति मल्लप्य, पतिका नाम नागदेव और पुत्रका नाम पडेबल तेल था। सेनापति मल्लप्य पश्चिमी चालुक्य शासक तेलपका नायक था। अतिमब्बे एक आदर्श उपासिका थी। इसने अपने व्ययसे पोन्नकृत शान्ति पुराणकी एक हजार प्रतियां और डेढ़ हजार सोने एवं जवाहिरातकी मूत्तियाँ तैयार करायी थीं। अतिमब्बेका धर्म सेविकाओंमें अद्वितीय स्थान है। १० वीं शताब्दीके अन्तिम भागमें वीरवर चामुण्डरायकी माता कालल देवी एक बड़ी धर्म प्रचारिका हुई है। भुजबल चरितम्से ज्ञात होता है कि इस देवीने गोम्मट देवकी प्रशंसा सुनी तो प्रतिज्ञा की कि जबतक गोम्मट देवके दर्शन न करूँगी तबतक दूध नहीं पीऊँगी। जब चामुण्डरायको अपनी पत्नी अजिता देवीके मुखसे अपनी माताकी यह प्रतिज्ञा ज्ञात हुई तो मातृभक्त पुत्रने माताको गोम्मट देवके दर्शन करानेके लिए पोदनपुरको ओर प्रस्थान किया। मार्गमें उसने श्रवणबेलगोलाकी चन्द्रगुप्ति वसतिके पार्श्वनाथके दर्शन किये और भद्रबाहुके चरणोंकी वन्दना की। इसी रातको पद्मावती देवीने कालल देवीको स्वप्न दिया कि कुक्कुट सर्पोके कारण पोदनपुरकी वन्दना सम्भव नहीं है, पर तुम्हारी भक्तिसे प्रसन्न होकर गोम्मट देव तुम्हें यहीं बड़ी पहाड़ी पर दर्शन देंगे। दर्शन देने का प्रकार यह है कि तुम्हारा पुत्र शुद्ध होकर इस छोटी पहाड़ी परसे एक स्वर्ण बाण छोड़े तो पाषाण शिलाओंके भीतरसे गोम्मट देव १. मेडिवल जैनिज्म, पृ० १५६
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy