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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति १२५ जिन शासनको प्रभावना करने वालोंमें गुणराज श्रेष्ठिका नाम भी प्रसिद्ध है। यह मेवाड़ के चित्तौड़का रहनेवाला था और अहमदाबादमें व्यापार करता था। इसका पूर्वज बीसल बड़ा प्रसिद्ध था, जो चित्तौड़में रहता था। इसका पौत्र धनपाल व्यापार करनेके हेतु अहमदाबाद गया था। उसका वंशज श्रेष्ठि गुणोराज हुआ। उसका छोटा भाई अम्बक था, जो जैन साधु हो गया था। इस परिवारका सविस्तार वर्णन वि० सं० १४९५ के एक चित्तौड़ अभिलेखमें आया है । गुणराजके ५ पुत्र थे-गज, महिराज, वाल्हा, कालु और ईश्वर । बाल्हाको राणा मोकल बहुत मानता था। कालू मेवाड़ राज्यमें उच्चपद पर नियुक्त था। गुणराज जैन संघ का प्रभावक श्रेष्ठि था। इसने संघ निकाला था। जिसका उल्लेख "सोम सौभाग्य काव्य" के अष्टम सर्ग में आया है। कहा जाता है कि इस संघमें रणकपुर मंदिर का निर्माता धरणाशाह भी शामिल था। इसने गुजरात के बादशाह अहमदशाहसे फरमान प्राप्तकर संघ यात्रा की थी। इसके पुत्र वाल्हाने मोकलसे आज्ञा लेकर चित्तौड़में महावीर जैन मन्दिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १४९५ में राणा कुम्भाके समय सोमसुन्दर आचार्य ने की थी । गुणराज श्रेष्ठि और उसका परिवार मन्दिर बनवाने, प्रतिष्ठा करवाने एवं जीर्ण तीर्थोद्धार करानेके कार्यमें विशेष प्रसिद्ध हैं । यात्रा संघ निकालकर इस परिवारने जैन धर्मकी अपूर्व सेवा की है। इस प्रकार ई० पूर्व तीसरी शतीसे ई० सन्की १६ वीं शताब्दी तक जैन धर्मकी उन्नति करनेमें राजपरिवार, सामन्त परिवार, मन्त्री परिवार एवं श्रेष्ठपरिवार संलग्न रहा है । जैनधर्मकी प्रभाविका नारियां महान् पुरुषोंके समान ही जैनधर्मकी उन्नति करने वाली अनेक उल्लेखनीय नारियां भी हुई हैं । प्राचीन शिलालेखों एवं वाड्मयके उल्लेखोंसे अवगत होता है कि जैन श्राविकाओं का तत्कालीन समाज पर पर्याप्त प्रभाव था। धर्म सेविका नारियोंने अपनी उदारता एवं आत्मोत्सर्ग द्वारा जैनधर्मको पर्याप्त सेवा को थी। श्रवण बेलगोलाके अभिलेखोंमें अनेक श्राविकाओं एवं आर्यिकाओंका उल्लेख है, जिन्होंने तन-मन-धनसे जैन धर्मके लिए प्रयत्न किया है। ई० पूर्व छठी शताब्दीमें जैन धर्मका अभ्युत्थान करनेवाली इक्ष्वाकुवंशीय महाराज चेटककी राज्ञी भद्रा, चन्द्रवंशीय महाराज शतानीककी धर्मपत्नी मृगावती, सूर्यवंशी महाराज दशरथको पत्नी सुप्रभा, उदयन महाराजकी पत्नी प्रभावती, महाराज प्रसेनजितकी पत्नी मल्लिका एवं महाराज दधिवाहनकी पत्नी अभया भी है । इन देवियोंने अपने त्याग एवं शौर्यके द्वारा जैनधर्मकी विजय पताका फहरायी थी। इन्होंने अपने द्रव्यसे अनेक जिनालयोंका निर्माण कराया था तथा उनकी समुचित व्यवस्थाके लिए राज्यकी ओरसे भी सहायताका प्रबन्ध किया गया था। महारानी मल्लिका एवं अभयाके सम्बन्धमें कहा जाता है कि इन देवियोंके प्रभावसे ही प्रभावित होकर महाराज प्रसेनजित एवं दधिवाहन जैन धर्मके दृढ़ श्रद्धालु हुए थे । महाराज प्रसेनजितने श्रावस्तीके जैनोंको जो सम्मान प्रदान किया था, उसका भी प्रधान कारण महारानी की प्रेरणा ही थी।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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