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________________ नाश न करें और साधन सामग्री के संचय के बजाय वह बहती रहे उसका ख्याल रखें । संस्कृत में उसे द्रव्य कहा जाता हैं, द्रव्य वह है जो द्रवित होता हैं, बहता रहता हैं । 'द्रवति इति द्रव्यः ।' (३) जनसंख्या हम कम रखें और मनुष्यमात्र की गुणवत्ता (Quality) बनाये रखें । मानव वही हैं जो मनन करता है, अन्यथा हम सब पशु हैं, ' पश्यति इति पशु : ' जो सिर्फ नजदीक का देखता है, आगे का, भविष्य का सोचता ही नहीं । (४) विज्ञान से आर्थिक विकास इतना हो जिसमें मनुष्य को आराम मिल सके, लेकिन साथ-साथ हमें ख्याल रखना होगा कि वातावरण और प्रकृति के मूल स्रोतों का संरक्षण हो, भविष्य का समाज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके, यह ख्याल में रखकर वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाये, वैश्विक व्यवस्था को प्रकृति के नियमों के अधीन रखा जाये, सौंदर्य दृष्टि रखकर ही विज्ञान और तंत्रज्ञान मानवीय कल्याण और समृद्धि के लिए प्रोत्साहित किया जाये । - ये चारों बातें ख्याल में रखेंगे तो हमारे कर्म भी उसी प्रकार के होंगे. जिससे वैश्विक व्यवस्था विचलित नहीं होगी । सृष्टि अनादि अनंत है, यदि ऐसा न मानें तो कई समस्याएँ खड़ी होगी । पहले और आगे की बातें अगर नहीं मानते तो कर्म और कर्म-फल का नियम टूट जाता हैं । जैसे-जैसे कार्य - कारण परंपरा खुलती जाती है, वैसे-वैसे चित्त निर्मल होता जाता है । पुरानी - पुरानी चीजें याद आती हैं । ज्ञानेश्वर लिखा हैं कि "मैं पुराने जमाने में राजा था ।" एनी बेसेन्ट ने भी अपनी कुछ कहानियाँ लिख रखी हैं । महावीर और गौतम बुद्ध के बारे में भी ऐसी कहानियाँ कही जाती हैं । - संदर्भ-सूचि (१) 'ध लाइट ऑफ एशिया,' एडविन आर्नोल्ड: लंडनः केगन पाल ट्रेन्ध, टूबनर एन्ड कं. लि. 1938, पृ. 111. (२) 'विनोबा चिन्तन नं. 7 । वाराणसी : सर्व सेवा संघ प्रकाशन, 1966, पृ. 19-20. (३) 'हरिजन' 31-3-1946, पृ. 63. ज्ञानधारा-3 ૧૧૬ ——— ▬▬▬▬▬ ----- જૈન સાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૩
SR No.032451
Book TitleGyandhara 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2007
Total Pages214
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
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