SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हम सर्वनाश की ओर जायेंगे । अभी के अनुभवों से हम सीखना चाहे तो प्रकृति ने तो अपना पंजा फैलाकर हमारा ध्यान उस ओर खींचा है, तभी तो सुनामी, भूकंप, विनाशक बाढ़, दावानल, कातरिना और रीटा के तूफान से हम भयभीत और अनिश्चित बन चुके हैं । समस्या का समाधान : हमें विश्व की ओर समग्र दृष्टि से देखना और बरतना होगा। इससे हमें हमारी जिम्मेदारी का भान होगा और महात्मा गांधी at ander - “The earth provides enough to satisfy everybody's need, but not for anybody's greed." हम याद रखेंगे । प्रकति ने तो अपना क्रम बना रखा है, हम उस चक्र को तोड़ते हैं, इसलिए विश्व की समस्या खड़ी होती है । यदि उस प्रकृति-चक्र को याद रखकर हम उसकी पूर्ति करते चले जायें तो और कोई समस्या खड़ी नहीं होगी । समस्या तब खड़ी होती है जब हम प्रकृति-चक्र में बाधा डालते है । इस प्रश्न को सुलझाने के लिए हमें अपने स्तर पर, अपनी भूमिका से ही सोचना होगा । अपना स्वधर्म ठीक से निभाना होगा । Think globally but act locally. विश्व की समस्या को ध्यान में रखते हुए हम उस समस्या को सुलझाने में किस तरह मदद कर सकते है, सोचना होगा और वैसा करना होगा । जैसे के प्लास्टिक की थैली या टुकड़े धरती पर पानी झरपने के लिए, वृक्ष के मूल फैलने के लिए, पानी बहने के लिए बाधारूप होते हैं, यह एक वैश्विक समस्या है । इस समस्या का हल हम अपने स्तर पर प्लास्टिक की थैली इत्यादि इस्तेमाल न करके ला सकते है । अपने कर्म से हमने जैसे विश्व की समस्या खड़ी की है, वैसे ही सोच-समझकर हम ये समस्या सुलझा भी सकते हैं । (१) विज्ञान का उपयोग तो मानव ही करते हैं तो मानव जाति के भक्षण के लिए नहीं अपितु रक्षण के लिए विज्ञान का उपयोग होना चाहिए । भविष्य की घटनाओं पर काबू पाने के लिए उसका उपयोग होना चाहिए । __(२) वैश्विक समस्याएं सुलझाने के लिए मर्यादित साधन-सामग्री को संभालकर इस्तेमाल करें । किसी भी वस्तु का दुरुपयोग या (ज्ञानधारा-3 F ११५ मन साहित्य SIMAI-3)
SR No.032451
Book TitleGyandhara 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2007
Total Pages214
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy