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________________ बंधनकरण २५ सत्ता में पूर्व में निकाली गई छब्बीस प्रकृतियों के भी ग्रहण करने से एक सौ अड़तालीस प्रकृतियां ग्रन्थकार (कर्मप्रकृतिकार) के मत से होती है। किन्तु गर्गर्षि आदि के मत में वन्धन के पन्द्रह भेद ग्रहण करने से एक सौ अट्ठावन प्रकृतियां होती हैं । बन्धन नामकर्म के पन्द्रह भेद प्रश्न--बंधन नामकर्म के पन्द्रह भेद किस प्रकार होते हैं ? उत्तर--औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन तीनों शरीरों के स्वयं के और तेजस, कार्मण शरीर के साथ क्रमशः मिलाने पर बंधन के नौ भेद हो जाते हैं, तैजस और कार्मण को उन्हीं तीनों शरीरों के साथ मिलाने पर तीन भेद और होते हैं तथा तैजस-तैजस बंधन, तैजस-कार्मण बंधन और कार्मण-कार्मण बंधन, इन तीनों भेदों को उक्त वारह भेदों में मिला देने पर बंधन नामकर्म के पन्द्रह भेद हो जाते हैं । इनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं पूर्वगृहीत औदारिक पुद्गलों का वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले औदारिक पुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है, वह औदारिक -औदारिक बंधन है । उन्हीं पूर्वगृहीत और गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का गृह्यमाण और पूर्वगृहीत तैजस-पुद्गलों के साथ जो सम्वन्ध होता है, उसे औदारिक-तैजसवन्धन कहते हैं और उन्हीं पूर्वगहीत एवं गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का गृह्यमाण और पूर्वगृहीत कार्मण पुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है, वह औदारिक-कार्मण बन्धन है। पूर्वगृहीत वैक्रिय पुद्गलों का अपने ही गृह्यमाण वैक्रिय पुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है, वह वैक्रिय-वैक्रिय-बंधन है । उन्हीं पूर्वगृहीत और गृह्यमाण वैक्रिय पुद्गलों का गृह्यमाण और पूर्वगृहीत तैजस पुद्गलों के साथ जो सम्वन्ध होता है, वह वैक्रिय-तैजसबंधन है और उन्हीं पूर्वगृहीत और गृह्यमाण वैक्रिय पुद्गलों का पूर्वगृहीत और गृह्यमाण कार्मण पुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है, वह वैक्रिय-कार्मणबंधन है। १. बंधन नामकर्म के पूर्वोक्त नौ, तीन और तीन, इन कुल भंगों को जोड़ने से जो पन्द्रह भेद होते हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं१. औदारिक-औदारिक बन्धन, २. औदारिक-तेजस बन्धन, ३. औदारिक-वार्मण बन्धन, ४. वैक्रिय-क्रिय बन्धन, ५. वैक्रिय-तैजस बन्धन, ६. वैक्रिय-कार्मण बन्धन, ७. आहारक-आहारक बन्धन, ८. आहारक-तेजस बन्धन, ९. आहारक-कार्मण बन्धन, १०. औदारिका-तैजस-कार्मण वन्धन, ११. वैक्रिय-जस-कार्मण बन्धन, १२. आहारक-तैजस-कार्मण बन्धन, १३. तैजस-तैजस बन्धन, १४. तैजस-कार्मण बन्धन, १५. कार्मण-कार्मण बन्धन। प्रकारान्तर से बंधन नाम के पन्द्रह भेदों को गिनने की सरल रीति-- मुल शरीर के साथ संयोग करने से बनने वाले भंग ५ - औदारिक-औदारिक, वैक्रिय-क्रिय, आहारक-आहारक, तेजस-तैजस, कार्मण-कार्मण। तेजस शरीर के साथ संयोग करने से बनने वाले भंग ३ ___औदारिक-तैजस, वैक्रिय-तैजस, आहारक तैजस । कार्मण शरीर के साथ संयोग करने से बनने वाले भंग ४ औदारिक-कार्मण, वैक्रिय-कार्मण, आहारक-कार्मण, तैजस-कार्मण। तेजस-कार्मण शरीर का युगपत् संयोग करने से बनने वाले भंग ३ औदारिक-तैजस-कार्मण, वैक्रिय-तैजस-कार्मण, आहारक-तैजस-कार्मण ।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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