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________________ संज्ञी असंज्ञी पंचेन्द्रिय का आयुकर्म में उत्कृष्टस्थितिबंध आदि स्थानों का अल्पबहुत्व व तत्संबन्धी प्रारूप संशीद्विकहीन शेष बारह जीवभेदों में आयुव्यतिरिक्त शेष सात कर्मों में स्थितिबंधादि का अल्पबहुत्व व तत्संबन्धी प्रारूप स्थितिबंध के अध्यवसायस्थानों की प्ररूपणा के अनुयोगद्वार गाथा-८७ स्थितिसमुदाहार में अनन्तरोपनिधा से प्रगणनाप्ररूपणा गाथा - ८८ परंपरोपनिधा से प्रगणनाप्ररूपणा अनुकृष्टि नहीं होने का कारण प्रकृतिसमुदाहार के अनुयोगद्वार गाथा - ८९ प्रकृतिसमुदाहार का निरूपण स्थितिसमुदाहार में तीव्रता-मंदता का निरूपण गाथा - ९० जीवसमुदाहार का विवेचन तत्संबन्धी प्रारूप गाथा - ९१, ९२ शुभ प्रकृतियों के चतुः स्थानक आदि के रसबन्ध का विचार तत्संबन्धी प्रारूप गाथा - ९३, ९४ अनन्तरोपनिधा से शुभ प्रकृतियों के चतुः स्थानक आदि रसबंधक जीवों का अल्पबहुत्व अनन्तरोपनिधा से परावर्तमान अशुभ प्रकृतियों के चतुःस्थानक आदि रसबंधक जीवों का अल्पबहुत्व गाथा - ९५ परंपरोपनिधा से उक्त प्रकार की प्रकृतियों के रसबंधक जीवों के अल्पबहुत्व का कथन गाथा - ९६, ९७, ९८, ९९, १०० रसयवमध्य से प्रकृतियों के स्थितिस्थानादिकों का अल्पबहुत्व अल्पबहुत्वदर्शक प्रारूप गाथा - १०१ • रसबंध में जीवों का अल्पबहुत्व तत्संबन्धी प्रारूप गाया- १०२ बंधनकरण का उपसंहार १. नोकषायों में कषायसहचारिता का कारण २. संहनन के दर्शक चित्र ३. बादर और सूक्ष्म नामकर्म का स्पष्टीकरण ४. पर्याप्त अपर्याप्त नामकर्म का स्पष्टीकरण प्रत्येक साधारण नामकर्म विषयक स्पष्टीकरण परिशिष्ट १८६ १.८७ १८८ १८९ १८९ १९० १.९० १९१ १९१ १९१ १९१ १९२-१९३ १९२ १९३ १९३-१९५ १९४ १९५ १९५-१९७ १९६ १९७ १९७-१९९ १९८ १९८ १९९-२०० १९९ २००-२०५ २०१ २०४ २०५ - २०६ २०५ २०६ २०६ २०६ २०९ २१० २११ २११ २१२
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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