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________________ १७० १७० १७१ १७२ १७२ १७२ गाथा-७४ १६७-१६८ बंधक जीवों की अपेक्षा आयकर्म की उत्कृष्ट स्थिति गाथा-७५ १६८-१६९ आयकर्म के अतिरिक्त शेष कर्मों के उत्कृष्ट अबाधाकाल का परिमाण १६८ अनपवर्तनीय आयु वालों के उत्कृष्ट अबाधाकाल का परिमाण १६८ युगलिक और भोगभूमिज जीवों का आयु संबन्धी अबाधाकाल विषयक मतान्तर १६९ गाथा-७६,७७ १६९-१७१ ज्ञानावरणपंचक, अन्तरायपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, संज्वलन लोभ की जघन्य स्थिति और अबाधाकाल सातावेदनीय की जघन्यस्थिति और अबाधाकाल १७० यश:कीति और उच्चगोत्र की जघन्य स्थिति और अबाधाकाल १७० संज्वलनत्रिक और पुरुषवेद की जघन्य स्थिति और अबाधाकाल गाथा-७८ १७१-१७३ मनुष्याय और तिर्यंचायु की जघन्यस्थिति और अबाधाकाल क्षुल्लकभव का परिमाण । देवाय और नरकायु की जघन्यस्थिति और अबाधाकाल तीर्थकर और आहारकद्विक नामकर्म की जघन्यस्थिति तीर्थंकर प्रकृति की जघन्यस्थिति विषयक शंका-समाधान गाथा-७९ १७३-१७५ पूर्वोक्त से शेष रही प्रकृतियों की जघन्यस्थिति प्राप्त करने सम्बन्धी नियम नियमानुसार प्रकृतियों की जघन्यस्थिति और अबाधाकाल वैक्रियषट्क की जघन्यस्थिति १७५ गाथा-८०,८१, ८२ १७५-१८१ एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा प्रकृतियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति १७६ द्वीन्द्रिय आदि जीवों की अपेक्षा प्रकृतियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का परिमाणबोधक नियम १७७ जीवभेदों में उत्कृष्ट-जघन्य स्थिति का अल्पबहुत्व १७७ जीवभेदों में स्थितिबंध का प्रमाण और अल्पबहत्वदर्शकप्रारूप और तत्सम्बन्धी स्पष्टीकरण १७९ गाथा-८३ १८१-१८२ __ अनन्तरोपनिधा से निषेकप्ररूपणा १८१ गाथा-८४ १८२-१८३ परंपरोनिधा से निषेकप्ररूपणा आयुकर्म की उत्कृष्टस्थिति में भी द्विगुणहानियां संभव हैं १८३ गाथा-८५ १८३-१८४ अबाधाकंडकप्ररूपणा गाथा-८६ १८४-१८९ उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति आदि के अल्पबहुत्व कथन की प्रतिज्ञा अर्थकंडक का लक्षण १८४ संज्ञी पंचेद्रिय पर्याप्त अपर्याप्त का आयकर्म के अतिरिक्त शेष सात कर्मों में स्थितिबंधादि स्थानों का अल्पबहुत्व उक्त अल्पबहुत्वकथन का प्रारूप १८६ १७४ १७४ १८२ १८३ १८४
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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