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________________ अभिषेय व प्रयोजन आदि गाया-२ आठ करणों के नाम और उनके लक्षण गाथा-३ वीर्य का स्वरूप वीर्य के दो प्रकार वीर्य के नामान्तर गाथा-४ वीर्य के भेद और उनके नामकरण वीर्यशक्ति में विषमता का कारण गाथा - ५ वीर्यप्ररूपणा के अधिकारों के नाम गाथा-६ अविभागप्ररूपणा गाया-७ वर्गणाप्ररूपणा गाया-८ स्पर्धकप्ररूपणा अन्तरप्ररूपणा गाथा-९ स्थानप्ररूपणा असंख्यात योगस्थान मानने का कारण अनन्तरोपनिधात्ररूपणा गाथा - १० परंपरोपनिधाप्ररूपणा द्विगुणवृद्धि हानि होने का स्पष्टीकरण गाथा - ११ वृद्धिप्ररूपणा वृद्धि और हानि के प्रकार वृद्धि और हानियों का समयप्रमाण गाथा - १२ उत्कृष्ट अवस्थानकाल गाथा - १३ जघन्य अवस्थानकाल उत्कर्ष से भी जघन्य अवस्थानकाल एक समय होने का कारण योगस्थानों का अल्पबहुत्व -१४, १५, १६ जीवभेदापेक्षा योगविषयक अल्पबहुत्व ४४: ४७ ४७-४८ ४८ ४९-५० ४९ ४९ ५० ५०-५३ ५० ५१ ५३ ५३-५४ ५४ ५४-५५ ५४ ५५-५६ ५६ ५६ ५६-५८ ५७ ५७ ५८ ५८-५९ ५९ ܘܐܘܘܐ ܡܫܘܫܘܬܘ ५९-६० ६० ६० ६० ६०-६१ ६१ ६१-६२ ६२ ६२ ६२ ६३-६५ ६३
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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