SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्रुवबंधिनी प्रकृतियां अध्रुवबंधिनी प्रकृतियां ध्रुवोदया प्रकृतियां अध्रुवोदया प्रकृतियां मिथ्यात्वमोहनीय को अध्रवोदया प्रकृति न मानने का कारण मिश्रमोहनीय को ध्रुवोदया प्रकृति न मानने का कारण ध्रुवसत्ताका प्रकृतियां अध्रुवसत्ताका प्रकृतियां अनन्तानुबंधी कषायों को ध्रुवसत्ताका प्रकृतियां मानने का हेतु घाति, अघाति प्रकृतियां अप्रत्याख्यानावरण कषायों को सर्वघाती मानने में हेतू सर्वघातिनी, देशघातिनी प्रकृतियों का स्वरूप परावर्तमान, अपरावर्तमान प्रकृतियां शुभ, अशुभ प्रकृतियां पुद्गलविपाकिनी प्रकृतियां । रति-अरति मोहनीय को पूदगलविपाकिनी प्रकृति न मानने का हेतू - भवविपाकिनी प्रकृतियां क्षेत्रविपाकिनी प्रकृतियां जीवविपाकिनी प्रकृतियां प्रकृतियों के विपाक में हेतु को प्रधान मानने का कारण रसविपाकापेक्षा प्रकृतियों के भेद में हेतु मतिज्ञानावरणादि सत्रह प्रकृतियों में एकादि चतुःस्थान पर्यन्त रसबंध होने में हेत • शेष शुभ-अशुभ प्रकृतियों में एकस्थानक रसबंध न होने में हेतु ... घाति प्रकृतियों में प्राप्त भाव सर्वघाति प्रकृतियों के प्रदेशोदय में क्षायोपशमिक भाव की संभावना स्वानुदयबंधिनी प्रकृतियां स्वोदयबंधिनी प्रकृतियां उभयबंधिनी प्रकृतियां समकव्यवच्छिद्यमानबंधोदया प्रकृतियां क्रमव्यवच्छिद्यमानबंधोदया प्रकृतियां उत्क्रमव्यवच्छिद्यमानबंधोदया प्रकृतियां सांतरबंधिनी प्रकृतियां सांतरनिरंतरबंधिनी प्रकृतियां निरन्तरबंधिनी प्रकृतियां उदयसंक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियां अनुदयसंक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियां उदयबंधोत्कृष्टा, अनुदयबंधोत्कृष्टा प्रकृतियां अनुदयवती, उदयवती प्रकृतियां ३७ . ४१
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy