SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૪૨ पूर्वोत्तर पार्श्वरूप सप्तसामयिक आदि वाले स्थान क्रमशः असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे अधिक-अधिक हैं । अर्थात् अष्टसामयिक से दोनों बाजुओं के सप्तसामयिक असंख्यातमणे अधिक, सप्तसामयिक से दोनों बाजुओं के षटसामयिक असंख्यातगुणे अधिक, षटसामयिक से दोनों बाजुओं के पंचसामयिक असंख्यातगुणे अधिक, पंचसामयिक से दोनों बाजुओं के चतुःसामयिक असंख्यातगुणे अधिक है और चतुःसामयिक योगस्वागतका सभक्पार्ववर्ती सर्व-विभाष परस्पर में तुल्य हैं । किन्तु चतुःसामयिक से उत्तर पार्श्ववर्ती त्रिसामयिक और द्विसामयिक अनुक्रम से असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे हैं जिसका प्रारूप इस प्रकार है - Infere Infine .. ash inferERE Lote rondte .. ... Line RELATES - "सप्त सामयिक विभाग असमुण असंख्य गुण असंस्थगुण - ''पद्य " ." असंख्य गुण असंख्य गुण असंख्य गुणद्वि " .७७७ स्थान की अपेक्षा इन योगस्थानों का आकार डमरुक जैसा बताया गया है। उसका दर्शक चित्र यह है-- xxxxx०००० xxxदिमाममिक योगस्था xxx०००००xxx/त्रि .. xxx००००४४/ चतु . xx०००००x४/ पत्र ००० oxx/ शर्वाल्प ० अष्ट सामयिक योगस्थान "kx०००xmसप्त , x०००xx षट् . . kxx०००००xxxपञ्च . xxx००००००xxxxचतुः . इस स्मल्क के आकार में ००० बिन्दु रूप योमस्थान हैं तथा बिन्दुओं के दोनों बाजुओं में दिये xx चौकड़ी रूप निशान असंख्यात गणे के प्रतीक हैं।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy