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________________ २४२ १०. जीवाल्पबहत्वप्ररूपणा-- .. . व गाथा १४, १५, १६ के अनुसार योगस्थानों में विद्यमान जीवों के जघन्य, उत्कृष्ट योग के अल्पबहुत्व के वर्णन का रूप इस प्रकार हैअनक्रम जीवभेद . योगप्रकार प्रमाण १. लब्धि अप. सूक्ष्म निगोद एकेन्द्रिय का जघन्य योग ... सब से अल्प उससे २. " , बादर एकेन्द्रिय का असंख्य गुणित , , द्वीन्द्रिय का ४. , , त्रीन्द्रिय का ... ५. , , चतुरिन्द्रिय का .. ६. , , असंज्ञी पंचेन्द्रिय का -... , संज्ञी पंचेन्द्रिय का .. , सूक्ष्म निगोद (एकेन्द्रिय) का... . उत्कृष्ट योग ९. , , बादर एकेन्द्रिय - ... ..... १०. पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का - जघन्य योग , बादर , का १२. , सूक्ष्म निगोद का । उत्कृष्ट योग , बादर एकेन्द्रिय का १४. लब्धि अप. द्वीन्द्रिय का १५. , , त्रीन्द्रिय का " , चतुरिन्द्रिय का असंज्ञी पंचेन्द्रिय का, . १८. , , संज्ञी , का। १९. पर्याप्त द्वीन्द्रिय का . जघन्य योग २०. , त्रीन्द्रिय का चतुरिन्द्रिय का असंज्ञी पंचेन्द्रिय का २३. " संज्ञी , , द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग २५. , वीन्द्रिय का २६. चतुरिन्द्रिय का २७. , असंज्ञी पंचेन्द्रिय का अनुत्तर देवों का ग्रैवेयक देवों का भोगभूमिज ति. म. का आहारक शरीरधारी का ३२. , शेष देव, नारक, तिर्यंच, मनुष्य का पूर्वोत्तर की अपेक्षा सर्वत्र असंख्येय गुणाकार सूक्ष्म क्षेत्र पस्योपम के असंख्य भागगत प्रदेश राशिप्रमाण समझना चाहिये। ~
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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