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________________ २४० कर्मप्रति आगे उतने योगस्थान छह समय की, उससे आगे उत्तने योगस्थान साप्त समय की, उससे आगे उतने योगस्थान आठ समय की स्थिति वाले हैं। उससे आगे उतने योगस्थान प्रतिलोमक्रम से सात, छह, पांच, चार, तीन एवं दो समय की स्थिति वाले हैं। इन सभी योगस्थानों की जघन्य स्थिति एक समय की होती है। इस प्रकार जघन्य से लेकर सर्वोत्कृष्ट योगस्थान तक के सब योगस्थानों के बारह विभाग होते हैं क्रम विभाग का नाम योगस्थान की संख्या समयस्थिति श्रेणी के असंख्येय भाग प्रमाण र ८ १. एक-सामयिक २. चतुः-सामयिक ३. पंच-सामयिक ४. षट्-सामयिक ५. सप्त-सामयिक ६. अष्ट-सामयिक ७. सप्त-सामयिक ८. षट्-सामयिक ९. पंच-सामयिक १०. चतुः-सामयिक ११. त्रि-सामयिक १२. द्वि-सामयिक । । । । । । । । । । । । ८ . " " - 0A 50000 x००००० m/०००००० ००००००० (०००००००० ००००००० ०००००० ००००० ०००० /०००। ૨ : ૨ समय की अपेक्षा ये बारह विभागात्मक योगस्थान यवाकृति रूप होते हैं इन बारह विभागात्मक योगस्थानों के यवाकृति रूप होने का स्पष्टीकरण यह है कि जघन्य योग के अनन्तर जैसे-जैसे वीर्यवृद्धि होती है, वैसे-वैसे चार, पांच, छह, सात और आठ समय की और उसके पश्चात् अवरोह के क्रम से सात, छह, पांच, चार, तीन और दो समय तक की स्थिति होती है। जिससे यव (जौ) का मध्यभाग जैसे मोटा होता है, वैसे ही योग रूप यव का मध्यविभाग आठ समय जितनी अधिक स्थिति वाला है और यव की दोनों बाजयें जैसे हीन-हीन होती हैं, वैसे ही योग रूप यव के अष्टसमयात्मक मध्यविभाग से सप्तसामयिक आदि उभय पार्श्ववर्ती विभाग हीन-हीन स्थिति वाले हैं। समय की अधिकता की अपेक्षा योगस्थानों का आकार यव जैसा है, लेकिन निरन्तर प्रवर्तने की अपेक्षा योमस्थानों की हीनाधिकता डमरुक के आकार जैसी होती है। अर्थात् जैसे डमरुक का मध्य भाग संकड़ा होता है, उसी प्रकार इस योगरूप डमरुक के मध्यभाग रूप अष्टसामयिक योगस्थान अल्प (श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण) हैं और डमरुक के पूर्वोत्तर दोनों भाग क्रमशः चौड़े होते जाते हैं, उसी प्रकार योगरूप उमरुक के ક ક & *
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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