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________________ आत्मप्रदेश . ', असत्कल्पना द्वारा योगस्थानों का समीकरणप्रथम योगस्थान में यान म. आत्मप्रदेश आत्मप्रदेश वर्गणा स्पर्धक प्रथम २६०० द्वितीय २२८० २०२० चतुर्थ १८६० पंचम १७०० १५४० द्वितीय योगस्थान में स्पर्धक प्रथम द्वितीय < < तृतीय तृतीय २२८० २०२० १८६० १७००. १५४० < चतुर्थ पंचम < षष्ठ < षष्ठ १२२० १२००० . २८ १२००० आत्मदेश, वर्गमा आत्मप्रवेश वर्गणा ततीय योगस्थान में स्पर्धक < . १८६० ४ २०२० . १८६० चतुर्थ योगल्यान में स्पर्धक प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम < < १५४० १३८० प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम षष्ठ सप्तम अष्टम < < १५४० १३८० १२२० ११५० ११३० < १२२० ११५० ११३० < सप्तम अष्टम < . .१०७० नवम ९५० १२००० १२००० १५. योग सम्बन्धी प्ररूपणाओं का विवेचन (गाथा ५-१६ तक) . सलेश्य जीव का वीर्य-योग कर्मबंध का कारण है। ग्रंथकार ने इसकी प्ररूपणा निम्नलिखित दस अधिकारों द्वारा की है १. अविभागप्ररूपणा, २. वर्गणाप्ररूपणा, ३. स्पर्धकप्ररूपणा, ४. अन्तरप्ररूपणा, ५. स्थानप्ररूपणा, ६. अनन्तरोपनिधाप्ररूपणा, ७. परम्परोपनिधारूपणा, ८. वृद्धिप्ररूपणा, ९. समयप्ररूपणा, १०. जीवाल्पबहुत्वप्ररूपणा। उन दस प्ररूपणाओं का स्पष्टीकरण इस प्रकार है१. अविभागप्ररूपणा पुद्गल द्रव्य के सबसे छोटे अविभाज्य अंश को जैसे परमाणु कहते हैं, उसी तरह जिसका दूसरा भाग म हो सके ऐसा योगशक्ति का अविभाज्य अंश योनाविभाग. अपवा बीर्याविभाग कहलाता है। शक्ति के इस अविभाज्य अंश को अविभागप्रतिच्छेद भी कहते हैं।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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