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________________ ७६ कर्मप्रकृति इससे आगे एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप जो वर्गणा प्राप्त होती है, वह जघन्य महास्कन्धवर्गणा है। जो पुद्गलस्कन्ध स्वाभाविक परिणमन से टंक, कूट, पर्वत' आदि के आश्रित होते है, उन्हें महास्कन्धवर्गणा कहते हैं-महास्कन्धवर्गणा नाम ये पुद्गलस्कन्धा विश्रसापरिणामेन टंककूटपर्वतादिसमाश्रिताः। उससे आगे दो परमाणु अधिक स्कन्धरूप दूसरी महास्कन्धवर्गणा होती है। इस प्रकार एक-एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप महास्कन्धवर्गणायें तब तक कहनी चाहिये, जब तक उत्कृष्ट महास्कन्धवर्गणा प्राप्त होती है। यहाँ जघन्य महास्कन्धवर्गणा से उत्कृष्ट महास्कन्धवर्गणा असंख्यातगुणी होती है। यहाँ गुणाकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग रूप जानना चाहिये। ये महास्कन्धवर्गणायें त्रसकायिक जीवों की अधिकता होने पर अल्प और त्रसकायिक जीवों की अल्पता होने पर बहुत पाई जाती हैं, ऐसा यह वस्तुस्वभाव है। शतकबृहत्चूर्णि में भी इसी प्रकार कहा है महखंधवग्गणा टंककूड तह पव्वयाइठाणेसु । जे पोग्गला. समसिया महखंधा ते उ बुच्चंति ॥ तत्थ तसकायरासी जम्मि य कालम्मि होंति बहुगो । महखंधवग्गणाओ तम्मि य काले भवे थोवा ॥ जं पुण होइ अ काले रासी तसकाइयाण थोवो उ । महखंधवग्गणाओ तहिं काले होंति बहुगाओ ॥ अर्थ--जो पुद्गल परमाणु टंक, कट तथा पर्वत आदि स्थानों के आश्रित होते हैं, वे महास्कन्ध या महास्कन्धवर्गणा कहलाते हैं। उनमें से जिस काल में त्रसकाय राशि अधिक होती है, उस काल में महास्कन्धवर्गणायें थोड़ी होती हैं और जिस काल में त्रसकाय राशि अल्प, उस काल में महास्कन्धवर्गणायें बहुत होती हैं । . परमाणुवर्गणा को आदि लेकर महास्कन्धवर्गणा पर्यन्त की ये सभी वर्गणायें गुणनिष्पन्न नामवाली-'गुणनिप्फन्नसनामत्ति' अर्थात् गुणानुरूप नामवाली हैं । जैसे कि एक-एक परमाणु, परमाणुवर्गणा, दो परमाणुओं का समुदाय रूप द्वि-परमाणुवर्गणा, इस प्रकार वर्गणाओं के नामों की सार्थकता है।' . अब 'असंखभागंगुलवगाहो' इस पद को स्पष्ट करते हैं । इस पद का यह अर्थ है कि सभी वर्गणाओं का अवगाहक्षेत्र अंगुल का असंख्यातवां भाग है । यद्यपि सामस्त्यरूप से ये प्रत्येक अनन्त परिमाण वाली हैं और सम्पूर्ण लोक के आश्रित कही गई हैं, तथापि एक-एक वर्गणा अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र का अवगाहन करके ही रहती हैं तथा कार्मणशरीरप्रायोग्य वर्गणा से प्रारम्भ कर पश्चाद्वर्ती औदारिकशरीरप्रायोग्य वर्गणा तक जितनी वर्गणायें हैं, उनका क्षेत्रावगाह पश्चानुपूर्वी के अनुक्रम से असंख्यातगुणा जानना चाहिये । १. टंक-छोटे पहाड़, टीले आदि, कूट-शिखर, पर्वत-बड़े पहाड़, जैसे-हिमालय आदि। . २. वर्गणाओं के विशेष वर्णन एवं विशेषावश्यकभाष्य गत वर्गणाओं की व्याख्या का विचार परिशिष्ट में देखिए।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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