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________________ बंधनकरण अनुक्रम वर्गणाओं के वर्णन (गा १८,१९,२०) का सारांशदर्शक प्रारूप इस प्रकार है— स्वजघन्य वर्गणा के प्रदेशों से स्वोत्कृष्ट वर्गणा में प्रदेशों की अधिकता वर्गणा नाम १. अग्रहण २. श्रदारिक ३. अग्रहण ४. वैक्रिय ५. अग्रण ६. आहारक ७. अग्रहण ८. जस ९. अग्रहण १०. भाषा ११ अग्रहण १२. श्वासोच्छ्वास १३. अग्रण १४. मन १५. अग्रण १६. कार्मण १७. ध्रुवाचित १८. अध्रुवाचित ( सान्तरनिरंतरा) १९. शून्य (१) २०. प्रत्येकशरीरी २१. ध्रुवशून्य (२) अन्तर्गत उत्तर वर्गणाये अनन्त 19 17 " " " "" "1 21 " 11 "1 ני , ד' उत्तर वर्गणा संख्या प्रमाण अभव्य से अनन्तगुण अभव्य से अनन्तगुण अभव्यानन्तगुण का अनन्तवो भाग प्रमाण अनन्त भागाधिक अभव्य से अनन्तगुण अभव्य से अनन्तगुण अनन्त भागाधिक अभव्यानन्तगुण का अनन्तवां भाग अभव्य से अनन्तगुण अभव्यानन्तगुण का अनन्तवा भाग अभव्य से अनन्तगुण अभयानन्तगुण का अनन्तवा भाग अभव्य से अनन्तगुण अभव्यानन्तगुण का अनन्तवां भाग अभव्य से अनन्तगुण अभव्यानन्तगुण का अनन्तवां भाग अभव्य से अनन्तगुण अभव्यानन्तगुण का अनन्तथा भाग अभव्य से अनन्तगुण अभव्यानन्तगुण का अनन्तवां भाग सर्व जीव से अनन्तगुण "" स्वजघन्य वर्गणा के प्रवेश को सूक्ष्म क्षेत्रपल्यो. के असंख्यातवें भाग से गुणा करने पर प्राप्त, उतनी स्वजन्य वर्गणा के प्रदेश को असंख्य लोकाकाश के प्रदेश से गुणा करने पर प्राप्त, उतनी अभव्य से अनन्तगुण अनन्त भागाधिक अग्रहण विद्यमान ग्रहण अग्रहण ग्रहण अग्रहण ग्रहण अग्रहण ग्रहण अग्रहण ग्रहण अग्रहण ग्रहण अग्रहण अभव्य से अनन्तगुण अनन्त भागाधिक ग्रहण अग्रहण अभव्य से अनन्तगुण अनन्त भागाधिक ग्रहण परंजीव से अनन्तगुण अपहण अभव्य से अनन्तगुण अनन्त भागाधिक अभव्य से अनन्तगुण अनन्त भाग धिक अभव्य से अनन्तगुण अनन्त भागाधिकः सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम के ब्रहण अग्रहण प्रायोग्य असंख्यातवें भाग गुण असंख्य लोकाकाश प्रदेश प्रमाण ܪ " विद्यमान अविद्यमान " 13 "1 33 11 " "1 31 21 13 11 " ७७ "1 13 18 विद्यमानअविद्यमान देशत: अविद्यमान विद्यमान अविद्यमान १. उत्तरवर्गणानों में से किन्हीं वर्गणाओं का किसी समय अभाव होता है, उस समयापेक्षा अविद्यमान और किसी समय सर्व वर्गणायें विद्यमान रहती हैं, उस समयापेक्षा विद्यमान किन्तु मूल वर्गणा प्रभाव की अपेक्षा तो सदैव विद्यमान हैं। २. प्रत्येकशरीरी जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा असंख्य गुण होने पर भी उत्तरवर्गणायें अनन्त ही होती हैं। क्योंकि जघन्य वर्गणागत राशि अनन्त है।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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