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________________ ५० भिक्खु दृष्टांत १२०. क्लामना बिना निर्जरा पुर सू विहार कर भीलवाड़े आवतां मारग में हेमजी स्वामी खेद पाया | जद चन्द्रभांणजी चोधरी ने कह्यौ- -आज तौ खेद घणी पामी । जद चन्द्रभांणजी चोधरी को - भीखणजी स्वामी कहिता था प्रदेशां मैक्लामना थयां विनां निर्जरा हुवै नहीं । १२१. धान माटी सरीखौ लागे रिणिहि गाम मै जीवो मुंहतो नगजी भलकट नें कहै भाइजी ! भीखणजी स्वामी कहिता था-धांन माटी सरीखी लागे जद संथा करणों बाकी आउखो थोड़ी जांणीजै । जैसी आज आय बीती है पिण म्हांसूं संथारी हुवै नहीं । इम करतां तिण हिज रात्रि आउखी पूरी कीधी । १२२. साधां रे असाता क्यूं ! किहि पूछ्यौ - महाराज ! साधां रे असाता क्यूं हुवे ? जद स्वामीजी बोल्या - किण हि भाठौ उछालने हेठे माथौ मांड्यो अन पर्छ भाठौ उछालण रा त्याग कीया तो आगे भाठौ उछाल्यौ ते तौ लागे पछे सूंस कीया तो पछै न लागे । ज्यूं आगे पाप कर्म बांध्या ते तौ भोगवै पछे पाप रा त्याग कीया तिण रौ दुःख न पड़े । १२३. चरचा कियां करणी ? दामोजी सीहवा गाम रौ वासी पाली में भेषधारयां रै थानक जाय भेषधारयां सूं चरचा कीधी । तिण मै केयक जाब तौ दीया ने केयक जाब आया नहीं । पछे स्वामीजी ने कह्यो - चरचा कीधी पिण जाब पूरा आया नहीं । जद स्वामीजी बोल्या - दामां साह ! बोदी धूणी नै दोय तीर लेई संग्राम मांड्यां किम जीते । तीरां रो भाथड़ी पूठे बांध जुद्ध कीयां जीते । ज्यूं भेषधाऱ्यां सूं चरचा करणी तौ पक्का जाब सीखने करणी कच्चा जाब सूं न करणी । I १२४. हाथ में कोई आयौ ? for हि पूछ - भीखणजी कोई बालक भाठा सूं कीड्यां मारतो तिण रौ भाठी खोसनै उरहौ लीयौ तिण नै कांई थयो ? जद स्वामीजी बोल्या - उणरा हाथ में कांइ आयौ ?
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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