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________________ ४८ भिक्खु दृष्टांत जद आ बोली-रे वीरां! थाली मती भांगज्यो। अमकड़ीये डूम री मांगनै आंणी है। व्यापारी बोल्या तूं जात री कुण है ? जद आ बोली-रे वीरां! हूं बणी-बणाई ब्राह्मणी छु । जात री तौ गरुडी छु । अनै मेरां मोंने ब्राह्मणी बणाई छ । मांड ने सारी बात कही। भीखणजी स्वामी बोल्या-तिम अ धोवण ऊंन्हौ पाणी पीवै, पिणसमकित चरित्र रहित तिण सू बणी-बणाई ब्राह्मणी रा साथी है'। ११७. इसा भोखणजी कलावान अमरसिंहजी रै जीतमलजी हेमजी स्वामी ने कह्यौ-हेमजी ! सोजत मै भीखणजी चोमासौ कीधौ। तिहां नजीक अमरसिंहजी रा साधां पिण चौमासौ कीधौ हुँतौ । सो लागते चौमासे तौ मिश्रवाला नै उडावता ने इसो दृष्टान्त दीयौ-अमरसिंहजी रा बड़ेरां रुघनाथजी जैमलजी रा बड़ेरां में गुजरात थी मारवाड़ मै आण्यां। जद तो माहो मांहिं गाढी हेत यौ। दोय तीन पीढी तांई तो हेत रह्यो। पछै रुघनाथजी जयमलजी कौहलोजी ए बूदरजी रा चेला सो अमरसिंहजी रा क्षेत्र जोधपुर आदि उरहा लिया । जद हेत रह्यौ नहीं । ज्यूं एक साहुकार जिहाज मै बैस समुद्र पार व्यापार करवा गयौ। पाछौ आवतां कपड़े री मंजूसा मै एक गर्भवती ऊंदरी आई सो व्याई। . साहुकार देखी नै बोल्यौ-इणनै समुद्र मै नहीं न्हांखणी । जाबता करै। पछै साहुकार पोता रै घरै आयो । थोड़ा दिनां मै ऊंदरी रौ परिवार बध्यौ । जद ऊंदरी बोली-औ साहुकार उपगारी है। सौ इणरौ आंपां नै बिगाड़ करणी नहीं । साहुकार पिण ऊंदरा ऊंदरयां नै दुख न दै। एक दोय पीढीयां तांई तो ऊंदरा ऊंदरथा बिगाड़ करयौ नहीं पछै बिगाड़ करवा लागा । साहुकार नां कपड़ा करंडिया कुरटवा लागा। ज्यूं दो-तीन पीढीयां तांई तौ अमरसिंहजी रा साधां सं हैत राख्यौ। पछै अमरसिंहजी रा क्षेत्र दाबवा लागा, श्रावक-श्राविका फारवा लागा। बैसते चोमासै तौ औ दृष्टांत दीधौ। तिणसू अमरसिंहजी वाळा तौ राजी रह्या । मिश्रवाला ने समझावा लागा। ___पछै उतरते चौमासै फतैचन्दजी गोटावत बौल्यौ-भीखणजी मिश्रवाला ने इज निषेधो पिण ए पुन्यवाळा नेड़ा बैठा त्यांने क्यूं नहीं निषेधौ । ____जद स्वामीजी बोल्या-एक जाट खेती बाई। जवार घणी नीपनीं। पाकी। च्यार चोर आय नै सिट्टां री गांठां बांधी। जाट देख उत्पात सं विचार, आय नै बोल्यौ-थारी जाति कांई है ? .. १. साधु रो वेष धार ने श्रद्धा, चारित्र थी रहित हुवे। तिणरी ओळखाण हेतु ए दृष्टांत दियो ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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