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________________ दृष्टांत : ७३-७५ एक पुरुष नै किण हि कह्यो-थारै वाई रो रोग है सो सतखंडिया महिल थी हेठो पड़, सो थारी वाई मिटै।। जद ते बोल्यौ-ए वाय नौ रोग तौ थारैइ छ, सो थे पिण पड़ी। जद ते कहै-हूं तौ पडूं तो म्हारा हाडका परहा भागै, तूं पड़। . जद ऊ पुरुष बोल्यौ-थारा हाडका भागै तौ माहरौ रोग किसतरै जासी । ज्यू भेषधारी कहै-असंजती नै दीयां म्हारौ साधपणौं परहो भाग। थे देवौ थाने पुण्य है। जद समजू बोल्यौ–थारौ साधपणौं भागै तौ ए दांन दीधा म्हांनै पुण्यधर्म किसतरै हुसी ? ७३. मूरख हुवै ते मान दोय जणां रै घणां काळ रौ वैर थौ । पछ हेत कीधौ । तिणनै नैहत्यौ । जीमावा घरे ले गयौ, भोजन परुसी कहै–भाइजी ! जीमौ । जब ते बोल्यौ-थे पिण भेळा जीमवा भेसौ। ऊ भेळौ बेस नहीं । जद जीमवा आयौ ते बोल्यौ-था विनां औ भोजन जीमण रा त्याग है । जो इण भोजन में जैहर है जद तौ औ भेळो कोइ वेसै नहीं। अनै सुद्ध भोजन है तौ भेळी वेससी । ज्यूं असंजती नै दीयां पुण्य कहै । जद समजू कहै -थे तो न देवौ अनै दूजौ देवै तिण मैं पुण्य बतावौ। पिण आ बात तो मूरख हुवै तौ मानें । पुण्य-धर्म हुवै तौ पहिला पोते कर दिखावौ जद दूजौइ मांनै। ७४. बुद्धि सूं विचार्यो एक भेषधारी बोल्यौ--भीषणजी नै कटारी सू परहा मारूं तो बेहदौ मिट जावै । पछै केतलं एक काळ तिणरौ शीळ भागौ। जद तिणनै साधपणौ नवौं दीयौ । लोकां मैं बात फैलाई- भीषणजी नै कटारी सूं मारवा रौ कह्यौ तिणसू दिख्या नवी दीधी। __आ बात स्वामीजी पिण सुणी । बुद्धि सं विचारचौ इणरौ शील भागौ दीसै छै। पछै ते मिल्यौ जद स्वामीजी पूछयौ-थारौ शील घर-स्त्री सूं भागौ के और स्त्री सं भागौ ? जद ते बोल्यौ-पर स्त्री संतो न भागौ, घर-स्त्री सं पिण संघटा रूप हुऔ । पूरौ तौ न भागौ। तिण सूं दिख्या नवी दीधी। ७५. कहणी करणी मैं फेर कुसळी, तिलोक भेषधारी संकडाइ मैं चालवा लागा । अनै मन मैं जाणे भीषणजी रा श्रावकां ने फेरां । परूपणां सांकड़ी करली करवा लागा-साधू
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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