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________________ २६ भिक्षु दृष्टात निमत्त उदकीया । तिण रुपीयां री जागा लेइ लकड़ा री खटकर कीधी। आरंभ थोड़ी। जद स्वामीजी नै किणहि कह्यौ-इणमैं कांइ आरम्भ है ? विशेष आरंभ नहीं। ___ जद स्वामीजी कह्यौ-कोई जनमैं जद पहिला अंकूरौ करै । जन्म पत्री वर्षफल तौ पछै हुवै । ज्यू औ थानक अंकूरा ज्यूं तौ हुवौ। पिण लांबा आऊखावाळौ देखेला इण ऊपर चूनौ चढ़तौ दीसै है। पछै कितरायक वर्षा पछै थानक ऊपर चूनौ चढयौ, जद टेकचंद पौरवाळ कह्यौ-'भीषणजी कहिता था इण थानक ऊपर चूनौ चढ़तौ दीसै", सो अबै चढ़े है । ६९. फुजाळ या साऊ न हुवै आगला नै समझावा दृष्टंत करड़ा दै, जद किणही स्वामीजी नै कह्यौआप दृष्टंत करड़ा देवौ। - जद स्वामीजी कह्यौ-रोग तौ गम्भीर को ऊठ्यौ, अनै कहै-म्हारै फंजालो । पिण फुजाल्यां साऊ न हुवै । हलवाणी रा डांम दीया साऊ हुवै । ज्यं मिथ्यात रूपीयौ रोग तौ करड़ो । ते दृष्टंत करड़ां सं दटै। ___७०. आचार्य पदवो आणी कठिन तिलोकचंदजी नै चन्द्रभाणजी आचार्य पदवी रौ लोभ देयनै फटायो। जद स्वामीजी कह्यौ-थांने आचार्य पदवी आवणी तौ कठिन है नै सूरदास री पदवी तौ आवै तौ अटकाव नहीं। थानै चन्द्रभाणजी ऊजाड़ मैं छोड़तौ दीसै है। कितरैयक वर्षां पछै चंद्रभाणजी तिलोकचंदजी नै निजर कची रौ नाम लेई ऊजाड़ मैं छोड्यौ । स्वामीजी रौ वचन आय मिल्यौ। ७१. विवेक __एक लाड़ मैं जैहर एक मैं नहीं। समझणौ हवै ते संका मिटयां विना दोनं न खावै । ज्यं साध-असाध री संका नींकळ्यां बिना बंदणा करै नहीं। ७२. म्हांनै पुण्य किसतरै हुसी ? भेषधारी सावद्य दान मैं पुण्य कहै । समजू हुवै ते कीमत पकी करै। असंजती नैं दीयां पुण्य कहौ छौ, तौ थे असंजती नै देवौ के नहीं ? जद कहै--मोनै तौ दीयां दोष लागै, म्हारौ कल्प नहीं। तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयौ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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