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________________ दृष्टांत : २२-२३ २९१ यह बात सुनकर हीरजी निरुत्तर हो गए । तब फिर बोले-साहूकार ने एक मकान बनाया । हजारों रुपये लगाए । वर्षाऋतु में वर्षा आई। कहीं-कहीं चूने लगा तो क्या पूरा मकान गिर गया? वैसे ही थोडे से दोष से साधपन कैसे समाप्त होगा? तब हेमजी स्वामी बोले-मकान तो तुमने कहा वैसा ही विशाल पर उसकी नींव में गोबर के कंडे भरे । वर्षा बहुत आई। तब वह मकान थोड़े में ही गिर गया। वैसे ही साधुपन स्वीकार किया पर श्रद्धा रूपी नींव ही शुद्ध नहीं तथा दोषों की स्थापना करे और दोष को दोष न समझे, उसमें सम्यक्त्व, साधुपन एक ही नहीं। इस प्रसंग में भी हीरजी के पास कुछ कहने को नहीं रहा। तब हेमजी स्वामी ने वहां पर सामायिक करके अपने मीठे कंठों से 'दया भगवती' की ढाल गाई। उनके श्रावक सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। पूछा--यह ढाल किसकी है ? हेमजी स्वामी ने कहायह ढाल भीखणजी स्वामी ने बनाई है। तब लोग बोले- ऐसी भीखणजी की श्रद्धा है । वे यहां आए थे पन्द्रह दिन रहे । हम तो पास में गए नहीं। . उसके बाद हेमजी स्वामी दूसरे दिन स्थानक में सामायक करने गए तब वहां सामायक करने की मनाही कर दी। तब आपने बाजार में आकर सामायिक की। नंदन मणिहारे का व्याख्यान प्रारंभ किया । लोगों ने सुना । बहुत प्रसन्न हुए। कहने लगे-भीखणजी के श्रावक भी ऐसे हैं, तो साधुओं का क्या कहना। उसके बाद चार व्यक्तियों को गुरु धारणा करवाई और तब वापस सिरियारी आए । यह हेमजी स्वामी गृहस्थपन में थे तब की घटना है। २२. सम्यक्त्व आनी मुश्किल पीपाड़ में एक व्यक्ति को हेमजी स्वामी ने कहा-सच्ची सम्यक्त्व स्वीकार करो, सच्चे गुरु को धारण करो। उसके बेटे ने भी कहा । तब वह बोला-इतने वर्ष तो बीत गये, अब आत्मा के काला क्यों लगाऊं । तब हेमजी स्वामी बोले-सच्चे देव गुरु और धर्म से तो काला मिटता है, इनसे काला लगता नहीं, फिर भी समझा नहीं। ऐसे मूर्ख जीव को सम्यक्त्व आनी मुश्किल है। २३. आछो देवे उपदेश गृहस्थपन में हेमजी स्वामी की रतनजी भलगट के साथ उठ बैठ थी। हेमजी स्वामी की जाति तो आछा बागरेचा, रतनजी की जाति भलगट । पर रतनजी तो धर्म में समझता नहीं, भांग पीता है । हेमजी धर्म में स्वयं समझते थे तथा औरों को भी समझाते थे। तब एक सेवक ने तुक्का जोड़ा जोड़ी तो जुगती मिली, हेमो ने रतनेश । मलकट सकोले भांगड़ी, आछो देव उपदेश ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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