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________________ २९. हेम दृष्टांत भीखणजी स्वामी। तब हीरजी बोले-ऐसे ऊंचे बोलते हो तो क्या चर्चा करने का मन है ? हेमजी स्वामी बोले-तुम्हारा मन हो तो भले ही करो न ? हीरजी ने पूछा-गायें घर में जल रही थीं उस घर का द्वार खोला, उसको क्या हुआ? तब हेमजी स्वामी बोले-तुम द्वार खोलो या नहीं ? हीरजी बोले-हम तो द्वार खोल दें। हेमजी स्वामी-हम तो कहते हैं—यह भावना ही खराब है—'कब गायें जले और मैं बाहर निकालूं', “साधु आए तो मैं व्याख्यान सुनूं, आहार-पानी बहराऊं, सामायिक पौषध करूं" यह भावना तो अच्छी है, पर गायों के जलने की तो भावना ही खराब है। ___ तब हीरजी निरुत्तर हो गये। इस चर्चा को छोड़कर दूसरी चर्चा करने लगे। भीखणजी कहते हैं- "थोड़े दोष से साधुपन भंग हो जाता है'' यह बात सही नहीं है । -- उदाहरण के रूप में एक साहूकार की परदेश से माल से भरी हुई जहाजें आईं । उसमें ४८ कोठरियां माल से भरी हुई थी। इतने में एक याचक आया। साहूकार की विरदावलियां यशो-गाथा गाई। तब साहूकार प्रसन्न हुआ। उसने सभी अड़तालीस कोठरियों की चाबियां सामने रख दी और बोला- एक चाबी उठा ले, उस कोठरी में जो माल निकले वह तेरा। तब उसने एक चाबी उठाई खोलकर देखा तो उस कोठारी में रस्से भरे हैं । वापिस आकर बोला- सेठजी ! उसमें तो रस्से भरे हैं, उससे क्या मैं फांसी लूं ? तब दूसरी बार साहूकार उस चाबी को सब चाबियों के साथ में डालकर बोला-अब उठाओ। तब उसने फिर चाबी उठाई। पर इस बार भी वही की वही घाबी हाथ आई। कोठरी देखकर वापिस आकर बोला-सेठजी ! उसी कोठरी की चाबी हाथ में आई है। मेरे भाग्य में ये रस्से ही हैं। __ तब साहूकार ने मुनीमों से पूछा-जांच करो, इन रस्सों के कितने रुपये लगे हैं ? तब मुनीमों ने खाते देखकर कहा-४८ हजार रुपये लगे हैं। वे रस्से जहाज के थे । तब सेठ ने उसको ४८ हजार रुपये दिये। हीरजी बोले- उन रस्सों के ही ४८ हजार रुपये आये तब जहाज के अन्दर का माल तो कई लाख रुपयों का होगा ? वैसे ही जहाज के माल के सामान साधुपन, रस्सों के पैसों के समान दोष । उन थोड़ेसे दोषों से साधुपन समाप्त कैसे हो ? तब हेमजी स्वामी बोले-८१ तख्तों की जहाज पर उसमें बीच का एक तख्ता नहीं । बैठने वाले भोले लोगों ने उसमें माल भर कर जहाज चलाया। सोचा–४. तख्ते इधर हैं और ४० तख्ते उधर हैं। बीच में एक तख्ता नहीं है, उससे जहाज क्या डूबेगा? यह चिंतन कर चले। समुद्र के बीच जहाज डूब गई। वैसे ही दोष की स्थापना करे, उनका साधुपन कैसे सधेगा?
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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