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________________ ૨૬ दृष्टांत पछे टीकमजी बोल्यो - भगवान् गोशाला ने बचायो जिण रो कांई ? जद हेमजी स्वामी बोल्या - सूत्र मै कह्यौ हुवै सो खरी | जद टीकमजी भगवती रौ पाठ काढ्यौ । अनुकंपा रे अर्थे गोशाला नै 'बचायो तिण रौ अर्थ टीकमजी बाचै नहीं । अद हेमजी स्वामी बोल्या - ए अर्थ बाचौ क्यूं नहीं ? तौ पिण टीकमजी बाचै नहीं । जद नायक विजैजी बोल्या - उरहा ल्यावौ, हूं बाचूं । इम कही पाना लेई वाचवा लागौ - " गोशाला नौ संरक्षण भगवान कीयो ते सरागपणा थी । दया ना एकरसपणा थी । जे भणी सर्वानुभूति सुनक्षत्र-मुनि नौ संरक्षण न रस्ते वीतरागपणा थी लब्धि ना अनुपजीविकपणा थी" ए अर्थ बाच्यौ । जद हेमजी स्वामी बोल्या - इहां तौ गोशाला नै बचायौ ते सरागपणा थीको छै । जद जती पिण कौ - इहां तौ सरागपणौ कह्यौ छै । जद टीकमजी बोल्या - भगवान तपस्या कीधी जिका ई सरागपणा मै करी । जद मजी स्वामी बोल्या - तपसा सरागपणौ कठे है, तपस्या तो क्षयोपशमभाव है । वीतरागपणा माहिली वानगी है । जब टीकमजी कष्ट हुवौ । शुद्ध जाब देवा असमर्थ । ७. म्हे क्यान जावां किण ही भीखणजी स्वामी ने कह्यौ - लोढां रा उपाश्रा मै हेमजी टीकमजी स्यूं चरचा करै है, लोक घणा भेळा हुवा, सो आप पधारी। जद स्वामीजी बोल्या - म्हे क्यांने जावां, जीत हुसी तौ ठीक इज है । अनै हार जासी तो दूजी वार करती रहेला । इतले जेतसी इंदोजी बालक था सो दौड़ स्वामीजी ने आयकौ – सो चरचा मै आपांरी जीत हुई नै उठे उपाश्रा मैं टीकमजी कष्ट हुवा, जाब दे नहीं । ८. भोखणजी उपगार माने है कस्तूरमल जालोरी प्रश्न पूछ्यो - मूंगां री कोठी भरी जीव मोकळा पङ्या, अबे कांई करणौ ? जद टीकमजी बोल्यौ -जीव शाळा मै अळायदा मेल देणा । हेमजी स्वामी ने पूछ्यौ- - आप कांई कहौ ? जद हेमजी स्वामी बोल्या - म्हे तो कहां छां - कोठी रे हाथ न
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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