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________________ दृष्टांत : ६ २४५ आय दीक्षा लीधी, जद ५ ठाणा थया। हेमजी स्वामी नै उदयरांमजी, लोढ़ा रा वास मैं गोचरी उठ्या। मुकनै दांती कह्यौ-गुरां ने कहौ सो टीकमजी सं चरचा करै। जद हेमजी स्वामी बोल्या-टीकमजी रौ मन हुवै तौ म्हासू ई करौ। पछै मुकनै दांती कह्यौ-टीकमजी सूं चरचा थे करसौ ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-करवा रा भाव है। पछै टीकमजी घणा लोकां सूं वास रै महढे ऊभा त्यां गोचरी करने आंवता हेमजी स्वामी आया जद टीकमजी पूछ्यौ---हेमजी चरचा करसौ ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-थारौ मन हुवै तौ करवा रा भाव है। इम कही नै हेमजी स्वामी चरचा पूछता हुवा-कहौ नव पदार्थ मैं सावध कितरा, निरवद्य कितरा ? सावध निरवद्य नहीं कितरा? . जद टीकमजी बोल्या-जीव नै आश्रव सावद्य निरवद्य दोन, अजीव, पुण्य, पाप, बंध सावध इ नहीं निरवद्य इ नहीं, संवर, निर्जरा मोक्ष, निरवद्य। ए टीकमजी री श्रद्धा तो नहीं पिण त्यांनै तेरह द्वार मूंहढे आवै तिण सूं आप रो पल्लो छोडायवा आ चरचा कही। जद हेमजी स्वामी बोल्या-आश्रव जीव के अजीव ? जद त्यां कह्यौ---आश्रव अजीव । जद हेमजी स्वामी बोल्या-थे आश्रव ने अजीव कहौ तौ आश्रव ने सावद्य निरवद्य दोनूं कह्या अनै अजीव नै सावध निरवद्य एक ही न कह्यौ, ते लेखे आश्रव अजीव न ठहरयौ। इम कह्यां कष्ट हुवौ । शुद्ध जाब देवा असमर्थ । पिण मूहढ़ा बोल्यौ, हूं कहूं ज्यूं ही सूत्र में है, भगवती मै है, जद नायकविजै जती उपाश्रा मांहि थी भगवती आण संपी। जद टीकमजी 'बारमा शतक रै पांचवा उद्देशक मै, 'क्रोध मै, आशा मै. तृष्णा मै, रुद्र मै, चंड मै, वर्णादिक १६ बोल पावै' कह्या, ते पाठ काढ्या। जद हेमजी स्वामी बोल्या-थे पहिला कह्यौ ज्य बतावौ । आश्रव, सावध, निरवद्य दो अनै आश्रव अजीव इम कहिता था सो तो पाठ नीकल्यौ नहीं। ६. दूजो चरचा करौ पछै नायकविजै उपाश्रा मांहे ले गयौ। हेमजी स्वामी पूर्व दिश लेई बैठा टीकमजी पश्चिम दिशे बैठौ। लोक बोल्या-इण चरचा मै तौ म्हांनै समझ न पड़े। दूजी चरचा करौ। टीकमजी पिण बोल्या---चरचा दूजी करौ। जद हेमजी स्वामी बोल्या-आगली चरचा रौ इज जाब देवौ। इम घणी बार आंहमा सांहमा कैहणौ पड़यो। १. भगवई १२।१०३-१०७ ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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