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________________ दृष्टांत जद हेमजी स्वामी को - थांरै लेख अजीव जीव नै मारै, अजीव झूठ बोले, अजीव चोरी करै, अजीव स्त्री सेवै, अजीव परिग्रह जाव १८ पाप सेवै, तौ नरक पिण अजीव जासी ? जद टीकमजी बोल्या—भीखणजी यूं कहै नै म्हे यूं कहां । इम कहिता हुवा काम चलायौ । २४४ ३. म्हासूं चरचा कांई करौ भारीमालजी स्वामी रे बावा रौ बेटौ भाई डूंगरसी नाम । ते पिण अमरसिंघजी रा टोळा मैं घर छोड्यौ । ते सरीयारी आयौ । आकार शरीर भारमलजी स्वामी रे उणियारै दीसे । हेमजी स्वामी चरचा पूछवा लागा । जद ते बोल्यो - हूं तो भारमलजी रौ भाई छू । म्हांसूं चरचा कांई करौ । जद हेमजी स्वामी बोल्या - ठीक है था सूं न करां । उत्तम पुरुषां रा नाम सूं, सरणा सुं कष्ट न कीधो । ४. कांई जाण ने बतायौ ? पाली में टीकमजी कनै चरचा करवा गया। थानक में मकोड़ो हालती देखी त्यां साध 'सवाई' नामे ते बोल्यो - हेमजी ! मकोड़ो-मकोड़ो " जद टीकमजी बोल्यो -थांने मकोड़ो बतायो, इणनै कांई थयौ ? जद हेमजी स्वामी बोल्या - म्हारौ पाप टळावा नै बतायो के मकोड़ा री मोहनी रे अर्थ बतायौ ? जद टीकमजी बोल्यो - थांरी पाप टळावा ने रखे हेमजी नै पाप लागैला यूं ने बतायो । जद हेमजी स्वामी सवाई नै पूछ्यौ - थे कांई जाणने बतायो । मकोड़ो बाप मर जासी यूं जाण ने बताया है के ? जद सवाई बोल्यो - "म्है तौ बापरौ मकोड़ो मर जासी" यूं जाण नै बतायौ । जद हेमजी स्वामी टीकमजी ने कह्यौ -थे पेला रे बदले झूठ क्यूं बोलौ ? औ तो कहै -मांका रे वास्ते, थे कहौ - थांरौ पाप टळावा बतायो, इण लेख ओ झूठ थे क्यूं बोलौ ? इम कष्ट कर ठिकाण आया । ५. हेमजी चरचा करसौ ? जी स्वामी दीक्षा लीधा पछै चरचा कीधी ते लिखिये छै - सं० १८५५ वर्ष भिक्षु १ भारीमाल ३ खेतसीजी ३ हेमजी स्वामी ४, च्यार साधां पाली ataratavat | पछे श्रावण महीने केलवा रा चपलोत उदैरांमजी पाली
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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