SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनतीस १०५ १०६ १०९ १११ क्रमांक २७८. टंटो मिट्यो २७९. वरतारौ समदृष्टि देवता रौ २८०. इसौ साधु रौ मार्ग २८१. तिण में दोष नहीं २८२. संथारो करणौ २८३. वांदणा बगड़े ज्यांरा गवीज २८४. घर तो लूट लियौ नै माथै वळे डंड २८५. वर्तमान काले मून २८६. सामायक ने धको देई पाई है २८७. एहीज भाव भक्ति करसी २८८. अबारू टीपण तेज है २८९. देवाळी किम ऊतरै ? २९०. दान मुख्य काया जोग २९१. घी सहित घाट उरही लीधी २९२. सब घरां में गोचरी क्यूं नहीं जावी ? २९३. जैसा गुरु वैसा देव और धर्म २९४. म्हारै करणी सं कांई २९५. माहै तांबो नै ऊपर रूपो २९६. आप 'जी' क्यूं कहवो ? २९७. सपूत कपूत २९८. चोधरपणं में खींचातांण घणी २९९. धसका पड़े ३००. पीळी ही पीळी निजर आवै ३०१. तीन नावा ३०२. ते कांई साधपणी पाळे ? ३०३. पकवान तो कड़वा कीधा ३०४. म्हे कातीक रा ज्योतिसी छां ३०५. मिथ्यात रोग गमावा रौ अर्थी ३०६. नीसाणे चोट लागे है ३०७. ओ मार्ग किता वर्ष चालसी? ३०८. नाम में फेर है ३०९. उर्व तो खप करै है ३१०. भीखणजी चोखा साध है ३११. न करावी तौ सरावो क्यूं ? ३१२. थाप क्यूं करौ ? . राजस्थानी पृष्ठांक हिन्दी पृष्ठांक २२८ १०६ २२८ १०६ २२८ १०६ २२८ २२९ २२९ १०७ २२९ १०७ २२९ १०७ २३० १०८ २३० १०८ २३० १०८ २३१ २३१ १०९ २३२ ११० २३२ २३३ ११२ २३४ २३४ २३५ ११४ २३६ २३६ ११४ २३७ ११५ २३७ ११५ २३७ ११५ २३८ २३८ २३८ ११६ २३८ ११६ २३८ ११७ २३९ ११७ २३९ ११७ २३९ ११७ ११८ ११२ ११४ २३९ २४०
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy