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________________ देत्टांत : २८२-२८५ २२९ २८२. तो फिर अनशन करना होगा अमुक संप्रदाय के साधु बोले- "सूई टूट जाने पर साधु को तेले का प्रायश्चित्त आता है।" __ तब स्वामीजी बोले- तुम्हारे अनुसार बाजोट टूट जाए तो फिर अनशन करना होगा। २८३. मृत्यु के गीत अमुक संप्रदाय के साधु बोले - "भीखणजी आचार की गीतिकाएं गाते हैं, तब लगता है कि वे मृत्यु के गीत गाते हैं।" तब स्वामीजी बोले-"मृत्यु के गीत बिगड़े हुए लोगों के गाए जाते हैं; जो शुद्ध रीति के अनुसार चलते हैं, उनके ....."नहीं गाए जाते।" २८४. घर लूट लिया और ऊपर से दंड पीपाड़ की घटना है। स्वामीजी ने एक गाथा गाई-"अचित्त वस्तु को जो . खरीदवा कर लेते हैं, उनकी समिति और गुप्ति खण्डित हो जाती है । पांचों ही महाव्रत भग्न हो जाते हैं और चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है । ऐसा आचरण करने वाले को साधु मत जानो।" यह गाथा सुन मौजीरामजी बोरा बोला-"ओ जशु ! यहां आ देख , घर तो लट लिया और फिर ऊपर से दंड और थोप दिया। इसी प्रकार भीखणजी पांचों महाव्रतों का भंग हो गया ऐसा कहते हैं तथा ऊपर से चातुर्मासिक प्रायश्चित्त और थोपते हैं।" __तब स्वामीजी बोले---पांच महाव्रत का भंग हो जाने के बाद चातुर्मासिक प्रायश्चित्त नहीं बतलाया गया है, किन्तु यहां यह बतलाया गया है कि पांच महाव्रतों का उतना भंग होता है, जितने भंग की शुद्धि के लिए चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है ।" यह कह कर उन्हें समझा दिया। २८५ केवल वर्तमान में मौन कुछ कहते हैं- "सावद्य दान के विषय में भगवान ने मौन रखने को कहा है। इसलिए केवल वर्तमान काल में ही नहीं, सदैव मौन रखना चाहिए, पुण्य या पाप नहीं कहना चाहिए।" उस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"तीन जनों की ऐसी मान्यता थी-एक व्यक्ति सावद्य दान देने में पुण्य मानता था; दूसरा उसमें मिश्र धर्म मानता था और तीसरा उसमें पाप मानता था। इन तीनों ने एक संकल्प किया-'यह सन्देह मिट जाए, तो घर में रहने का त्याग है ।" अब इस सन्देह को दूर करने के लिए वे राज्य-दरबार में तो नहीं जाएंगे। इसे दूर करने के लिए तो साधुओं के पास ही आएंगे। साधुओं को पूछने पर कहेंगे-'हमारे तो मौन है।' फिर उनका संदेह कैसे मिटेगा ? इस दृष्टि से मौन वर्तमान काल में (सावद्य दान देने के प्रसंग में ही) रखना चाहिए। सूत्रकृतांग (१।११; २।५) के अर्थ में ऐसे प्रसंग में मौन रखने को कहा है । और उपदेशकाल के संदर्भ में भगवती सूत्र (८१६) में भगवान ने गौतम से कहा-'तथारूप असंयती
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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