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________________ २२८ भिक्खु दृष्टांत २७८. चलो, झंझट मिटा किसी के बिमारी होती है, तब वह हाय ! त्राहि करने लग जाता है । तब स्वामीजी बोले - " ऐसा नहीं करना चाहिए। बीमारी होने पर दृढ रहना चाहिए ।" "जैसे किसी के सिर पर ऋण था। वह ऋण चुकाना नहीं चाहता था, किन्तु ऋणदाता ने शक्ति प्रयोग से अपनी पूंजी वापस ले ली । तब मूर्ख आदमी तो विलाप करता है और समझदार होता है, वह सोचता है – 'चलो, मेरा ऋण चुका। बाद में ही देना पड़ता, तो पहले ही भंझट मिटा; सिर का ऋण उतर गया ।' इसी प्रकार बिमारी होने पर जो सयाना होता है, वह सोचता है - ' बंधे भोग लिए; चलो भंझट समाप्त हुआ ।' यह सोच वह विलाप नहीं करता । २७९. यह सम्यग्दृष्टि देवता का युग है। स्वामीनाथ व्याख्यान में भैरव और शीतला को मानने का निषेध करते थे; तब हेमजी स्वामी बोले- "आप देवता को मानने का निषेध करते हैं, तो वे उपद्रव खड़ा कर देंगे । तब स्वामीजी बोले - "यह सम्यग्दृष्टि देवता का है, तो सम्यग्दृष्टि इन्द्र उस पर वज्र प्रहार कर देता है। को कष्ट नहीं देते । हुए कर्म युग है। सो कोई उपद्रव करता इसलिए वे डरते हुए साधुओं २८०. ऐसा है साधु का मार्ग स्वामीजी बोले - " यदि मृत मनुष्य किसी के काम आए तो साधु से किसी गृहस्थ के काम आए। साधु के पास कोई व्यक्ति आया । वह वहां भूल गया । कोई दूसरा उन्हें उठा ले गया । साधु जानता है - 'वे रुपए 'क' 'ख' उन्हें ले गया । 'क' आकर पूछता है – 'यहीं मेरे रुपए रह गए; गया ?' साधु उसे नहीं बताता कि 'ख' ले गया । ही साझेदारी है। बाकी सावद्य कार्यों की दृष्टि आता। ऐसा है साधु का मार्ग ! " सांसारिक दृष्टि पांच रुपये के हैं और उन्हें कौन ले क्योंकि उनकी केवल धर्म सुनाने की से साधु गृहस्थ के कोई काम नहीं २८१. इसमें कोई दोष नहीं भीखणी स्वामी गृहस्थ के घर से कुछ समय के लिए मांग कर लाई हुई सूई, च, छूरी को एक रात या अनेक रात तक अपनी निश्रा में रखते थे । तब अन्य संप्रदाय के साधु बोले – “साधुओं को रात्रि के समय सूई नहीं रखनी चाहिए । छूरी और कैंची भी रात्रि को नही रखनी चाहिए । तब स्वामीजी बोले – “पट्ट में लोहे की कीलें रहती हैं तथा शंख, पत्थर और दवा, चंदन आदि घिसने के पत्थर या खरल - ये सब मांग कर लाई हुई वस्तुएं रात को रखी जाती हैं। इसी प्रकार लोहे का हमामदस्ता आदि गृहस्थ के घर से कुछ समय के लिए मांग कर लाई हुई वस्तुएं भी रात को रखी जाती हैं; इसमें कोई दोष नहीं है तो फिर सूई, कैंची, छूरी भी गृहस्थ के घर से कुछ समय के लिए मांग कर लाई हुई यदि रात्रि को रखी जाती है, तो उसमें कुछ दोष नहीं है ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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