SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दृष्टांत : २६९-२७१ २२५ तब स्वामीजी ने दृष्टान्त दिया - दस सेर चावलों का चरु चुल्हे पर चढाया । ऊपर के चावलों को सीझा हुआ देख कर सयाना आदमी जान लेता कि भीतर के चावल भी सीझ गए हैं और मूर्ख आदमी सोचता है- ऊपर के चावल तो सीझ गए पर भीतर के चावल अभी सीझे नहीं हैं - यह सोचकर भीतर हाथ डालता है, तो उसका हाथ जल जाता है । इसी प्रकार चतुर आदमी मूल तत्त्व को समझ लेने पर जान लेता है कि दूसरे तत्त्व भी सही हैं । २६६. सुमने मात्र से रोग नहीं चला जाता स्वामीजी से चर्चा करते समय न्याय निर्णय की बात बताने पर भी किसी ने बात नहीं मानी, तब स्वामीजी बोले – “किसी रोगी को वैद्य औषध पिलाने लगा । उसने कहा - "यह औषध पी लो, तुम्हारा रोग चला जाएगा।" तब रोगी बोला -- मुंह में तो डालूंगा नहीं, मेरी पीठ पर उंडेल दो । यदि rषध अच्छा है, तो मेरी पीठ पर उंडेलने से ही रोग चला जाएगा। तब वैद्य बोला - पीए बिना तो रोग नहीं जाएगा । इस प्रकार सूत्र और साधु का वचन मानने से मिथ्यात्वरूपी रोग जा सकता है पर उसे माने बिना, केवल सुनने मात्र से वह रोग नहीं चला जाता । २७०. यह वही है सम्वत् १८५४ की घटना है । स्वामीजी ने चन्द्र और वीरां -- इन दोनों साध्वियों को संघ से पृथक् कर दिया । पीपाड़ में ऐसा प्रसंग बना- वे दोनों साध्वियां जहां हेमजी स्वामी विराज रहे थे, उस दुकान पर आकर बहुत सारे अन्य सम्प्रदाय के श्रावकों के सुनते हुए संघ के साधुओं और साध्वियों का अवर्णवाद बोलने लगीं । तब लोग बोले – “देखो ! ये भीखणजी के संघ में थीं और अब ये उनके संघ के अवर्णवाद बोल रही हैं । तब स्वामीजी सामने की दुकान में विराज रहे थे, वहां से उठ कर आए और कहा -- " यह चन्दू जो कहती उसे तुम सच मानते हो, तो जानते हो यह पहले आचार्य रुघनाथजी के सम्प्रदाय में फत्तुजी की चेली थी। उस समय फत्तुजी के सिर पर कोई दोष का आरोप आया। तब यह चन्दू इस प्रकार कहती थी- 'यदि सूर्य में कोई कलंक हो, तो मेरी गुरुणी में कोई दोष होगा ।' और बाद में इसी चन्दू ने किसी बहिन की ओढनी मांग कर ली और अपनी गुरुणी को उसे ओढा कर नई दीक्षा दिलाई। यह वही है ।" स्वामीजी का यह वचन सुन कर लोग चारों ओर बिखर गए । चन्दुजी भी चलती बनी । उसके पिता विजयचन्द लूनावत तथा अन्य ज्ञातियों ने भी उसे अयोग्य समझ लिया । २७१. परिचित स्थान छूटता नहीं कुछ लोगों के स्वामीजी का सिद्धान्त समझ में आ गया, फिर भी वे अमुक सम्प्रदाय का संग नहीं छोड़ रहे थे । इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया - बैलगाड़ी के
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy