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________________ १८६ भिख्खु दृष्टांत दवा ज्यादा डालते हैं । संभव है कहीं आंख गवां बैठे । फिर भी उन्होंने दवा डालना नहीं छोड़ा। कुछ समय बाद उनकी आँखें बहुत कमजोर हो गई । आंखों में दवा अधिक डाली, इसलिए आंखों को क्षति पहुंची। - १६६. वह वापस लेने योग्य नहीं नाथद्वारा की घटना है । गुजरात से एक अन्य सम्प्रदाय का साधु सिंघजी आया और स्वामीजी के पास उसने दीक्षा ली। कुछ दिन वह ठीक रहा, फिर अयोग्य समझ सिरियारी में उसे संघ से अलग कर दिया। वह मांढा गांव चला गया। फिर खेतसीजी स्वामी बोले---सिंघजी को प्रायश्चित्त देकर उसे संघ में वापस लें । मैं जाकर उसे ले आता हूं। तब स्वामीजी बोले- वह लेने योग्य नहीं । फिर भी खेतसीजी स्वामी कमर कस कर उसे लाने के लिए तैयार हो गए। तब स्वामीजी बोले-उसके साथ तुमने यदि आहार कर लिया तो तुम्हारे साथ हमें आहार करने का त्याग है, यह सुनकर खेतसीजी स्वामी सिंघजी को लाने नहीं गए। ऐसे थे शक्तिशाली भीखणजी स्वामी। बाद में सिंघजी का समाचार सुना कि वह (किसी गृहस्थ के घर में) गुदड़ी ओढ चक्की के पास सो रहा है। १६७. भूमि को नाप आओ दो साधु परस्पर आग्रह करने लगे । वे दोनों स्वामीजी के पास आए । इसके तुंबे में से पानी की बूदें गिर रही थीं। एक कहने लगा -इतनी दूर बूंदें गिरी । दूसरे ने कहा-इतने कदमों तक बूंदें गिरी । इस प्रकार परस्पर विवाद करने लगे । समझाने पर भी नहीं समझ पाए। तब स्वामीजी ने कहा-तुम दोनों रस्सी लेकर जाओ और उस स्थान को नाप आओ । तब वे दोनों आग्रह छोड़ सीधे सरल हो गए। १६८. लोलुप वह होगा दो साधु परस्पर आग्रह करने लगे । एक कहता है-तुम लोलुप हो । दूसरा कहता है--तुम लोलुप है । इस प्रकार विवाद करते-करते वे स्वामीजी के पास पहुंचे। फिर भी उन्होंने विवाद नहीं छोड़ा। तब स्वामीजी बोले-तुम दोनों 'विगय' (दूध दही, घी आदि) खाने का त्याग करो, आज्ञा की छूट रखो । जो पहले विगय खाने की आज्ञा मांगेमा, वह लोलुप होगा। एक साधु ने लगभग चार महीनों तक विगय नहीं खाई, फिर उसने आज्ञा मांगी, तब दूसरे साधु के अपने आप विगय खाने की छूट हो गई । इस प्रयोग से वे अपने आप समझ गए। १६६. अवगुण किसका देख रहे हो ? ___ सं० १८५६ की घटना है । स्वामीजी वायु की बीमारी के कारण नाथद्वारा में लगभग तेरह मान रहे । वहां मुनि हेमराजजी गोचरी गए। वे चने की और मूंग की
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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