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________________ दृष्टांत : १६२-१६४ १८५ हिंगुल बोझिल भी होता है। काला रंग हल्का होता है। उस पर से चिकनाहट उतारना आसान होता है । इत्यादि अनेक कारणों से पात्रों को कई रंगों से रंगा जाता है। सूत्र में अनेक रंगों से रंगने का निषेध नहीं है । १६२. खामियां बताते रहते वेणीरामजी स्वामी छोटी अवस्था में थे तब वे खामियां बताते रहते - स्वामीजी ! आपने बिना देखे और बिना प्रमार्जन किए पैर पसार दिए । एक दिन वेणीरामजी स्वामी कुछ दूर बैठे थे । स्वामीजी ने गुप्तरूप से प्रमार्जन कर पैर पसारे और साधुओं से कहा- देखो, वह बेणा दूर बैठा देख रहा है । इतने में वेणीरामजी स्वामी बोल उठे वह देखो, स्वामीजी ने बिना देखे पैर पसार दिए । तब स्वामीजी और पास बैठे दूसरे साधु मुस्कराने लगे। साधुओं ने कहास्वामीजी ने प्रमार्जन कर पैर पसारे हैं । तब वेणीरामजी शर्माये हुए स्वामीजी के पास आ पैरों में पड़ गए । १६३. ऐसे थे विनम्र वेणीरामजी पीपाड़ की घटना है वेणीरामजी स्वामी दूसरी दूकान में बैठे थे । स्वामीजी ने उन्हें - भो वेणीराम ! ओ वेणीराम ! - इस प्रकार दो-तीन बार पुकारा । पर वे वापस बोले नहीं । तब स्वामीजी ने गुमानजी लुणावत से कहा- लगता है बेणां संघ से अलग होगा । तब गुमानजी वेणीरामजी स्वामी के पास जाकर बोले-आपको स्वामीजी ने पुकारा, आप बोले नहीं, इस पर स्वामीजी ने कहा- लगता है बेणा संघ से अलग होगा । यह सुनकर वेणीरामजी स्वामी भयभीत हो गए और स्वामीजी के पास आ उनके चरणों में गिर पड़े । तब स्वामीजी बोले - रे मूर्ख ! पुकारने पर वापस बोलता नहीं है ? तब वेणीरामजी स्वामी विनम्रता के साथ बोले- महाराज! मैंने सुना नहीं । उन्होंने बहुत विनम्रता की । ऐसे थे विनीत वेणीरामजी स्वामी और ऐसे थे शक्तिशाली स्वामीजी । करूं । १६४. ऐसे थे स्वामीजी अवसरज्ञ वेणीरामजी स्वामी ने कहा- मैं थली प्रदेश में जाऊं और चन्द्रभानजी से चर्चा तब स्वामीजी बोले- तुम्हें उनसे चर्चा करने का त्याग है। ऐसा ही अवसर देखा, इसलिए वह त्याग करा दिया। ऐसे थे स्वामीजी अवसरज्ञ । १६५. संभव है आंखें गवां बैठें मेंणाजी साध्वी और वेणीरामजी को लक्ष्य कर स्वामीजी ने कहा- - ये आंखों में
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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