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________________ दृष्टांत : १७०-१७२ १८७ दाल इकट्ठी ले आए। स्वामीजी ने उसे देख पूछा-यह चने की और मूंग की दाल किसने इकट्ठी की ? तब हेमजी स्वामी बोले- मैं मिलाकर लाया हूं। तब स्वामीजी बोले-बीमार साधुओं के लिए चेष्टा पूर्वक मांग अलग-अलग लानी तो कहीं रही, पर जो अलग-अलग थीं उन्हें तुमने इकट्ठा क्यों किया। तब हेमजी स्वामी बोले-अनजान में ये इकट्ठी हो गई। तब स्वामीजी ने उन्हें बहुत उलाहना दिया। तब वे एकांत स्थान में जाकर लेट गए । उदास हो गए। बाद में स्वामीजी ने आहार कर उनके पास आकर कहाअवगुण अपनी आत्मा का देख रहा है या मेरा ? तब हेमजी स्वामी बोले-महाराज! अवगुण तो अपना ही देख रहा हूं। तब स्वामीजी बोले-ठीक है। आज के बाद सावधान रहना। उठो, जाओ, आहार कर लो। यह कह कर उन्हें आहार करा दिया। १७०. वे किसी को माफ नहीं करेंगे काफरला गांव में खेतसीजी स्वामी और हेमजी स्वामी गोचरी गए। वहां कई प्रकार का धोवन-पानी था। उनका स्वाद चखे बिना उन्हें इकट्ठा कर दिया। तब खेतसीजी स्वामी ने हैहा-हेमजी ! आज चखे बिना धोवक-पानी को इकट्ठा कर दिया है । यदि वह ठीक नहीं निकला तो स्वामीजी इतना उलाहना देंगे कि कुछ कहा नहीं जा सकता । वे किसी की लिहाज नहीं रखेंगे । उसके बाद काफरला के मंदिर में उस धोवकपानी को चख कर देख । वह अच्छा निकला । तब उनका मन प्रसन्न हो गया। १७१. बीमार के लिए ऐसी व्यवस्था करते स्वामीजी बीमार साधुओं के लिए दाल मंगाते तब उन्हें दो तरफ रखते -कुछ तीखी होती, कुछ कहवी होती, किसी में नमक ज्यादा होता, किसी में नमक कम होता। बीमार को कोनसी रुचती है, कौनसी नहीं रुचती। इसलिए वे उन्हें अलग-अलग रखते । बीमार के लिए ऐसी व्यवस्था करते । ___ १७२. तुम्हे यह शंका क्यों हुई? सं ० १८५५ की घटना है । स्वामीजी कांकरोली में 'सहलीतां की पोल' में ठहरे हुए थे । रात के समय पोल की खिड़की खोल कर स्वामीजी देहचिन्ता से निवृत्त होने के लिए बाहर गए । ___ तब हेमजी स्वामी ने पूछा -महाराज ! क्या खिड़की खोलने में कोई आपत्ति नहीं है। ___ तब स्वामीजी बोले -यह पाली का चोथजी संकलेचा दर्शन करने आया हुमा है । यह बहुत शंकाशील है । पर इस बात की शंका तो इसके भी नहीं हुई । तुम्हें यह शंका क्यों हुई ? ___ तब हेमजी स्वामी ने कहा-मेरे मन में शंका किसलिए हो ? मैं तो ऐसे ही पूछ रहा हूं।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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