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________________ भिक्खु दृष्टांत जयमलजी और कोहलोजी, जो भूधरजी के शिष्य थे, ने अमरसिंहजी के क्षेत्रों - जोधपुर आदि को अपना बना लिया। तब प्रेम टूट गया । ܘܘܪ जैसे एक साहूकार जलपोत में बैठ समुद्र के उस पार व्यापार करने गया । वह वहां से लौट रहा था तब कपड़े की सन्दूक में एक गर्भवती चूहिया आ गई। उसका प्रसव हुआ । साहूकार ने देख कर कहा - इसे समुद्र में नहीं डालना है । वह उसकी सारसम्हाल करने लगा । फिर साहूकार अपने घर आ गया। फिर कुछ दिनों में चूहिया का परिवार बढ़ा । तब चूहिया बोली - यह साहूकार उपकारी है। इसलिए हमें इसको नुकसान नहीं पहुंचाना है। साहूकार भी चूहे और चूहिया को कष्ट नहीं देता । एक-दो पीढ़ी तक तो चूहे और चूहिया ने साहूकार को नुकसान नहीं पहुंचाया। फिर वे नुकसान करने लगे । वे साहूकार के कपड़ों और करंडियों को कुरेदने लगे । इसी प्रकार दो-तीन पीढ़ियों तक अमरसिंहजी के साधुओं से प्रेम रखा। उसके बाद वे अमरसिंहजी के क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाने लगे, श्रावक-श्राविकाओं को अपने पक्ष करने लगे । चतुर्मास के प्रारंभ में यह दृष्टांत दिया और मिश्र-धर्म की मान्यता वालों को समझाना शुरू किया। उससे अमरसिंहजी के पक्ष के लोग प्रसन्न रहे । फिर चतुर्मास की समाप्ति के समय फतेहचंदजी गोटावत बोला - भीखणजी ने मिश्र धर्म की मान्यता वालों का ही खंडन किया, किन्तु ये पुण्य की मान्यता वाले निकट बैठे हैं, इनका खंडन क्यों नहीं किया ? तब स्वामीजी बोले - एक जाटनी ने खेती की । ज्वार की बहुत पैदावार हुई । चार चोरों ने भूट्टे तोड़े और उनकी गांठें बांधी । जाट ने उन्हें देखा, अपनी सहज बुद्धि से विचार कर उनके पास आकर बोला- तुम्हारी जाति क्या है ? एक व्यक्ति बोला मैं राजपूत हूं । दूसरा व्यक्ति बोला- मैं महाजन हूं । तीसरा व्यक्ति बोला- मैं ब्राह्मण हूं | चौथा व्यक्ति बोला- मैं जाट हूं । तब जाट बोला राजपूत से. - आप मालिक हैं, आपने भुट्टे लिए हैं, यह उचित बात है । महाजन व्यापारी है— ऋण देने वाला है. इसने भुट्टे लिए यह भी उचित है । ब्राह्मण पुण्य का दान लेता है, वह भी ठीक है । परन्तु जाट किस हिसाब से लेता है ? इसे मैं मेरी मां के पास ले जाकर उपालंभ दिलाऊंगा । यह कहकर उसकी गांठ को नीचे डाल, ज्वार के खेत में दूर ले जा, उसे उसी की पगड़ी से बबूल के तने से बांध दिया । फिर वह जाट वापस आकर बोला- मेरी मां ने कहा है, राजपूत तो मालिक है, वह लेता है तो उचित है । बनिया ऋण देने वाला है, वह लेता है तो भी उचित है।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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